6 दिसंबर का वह दिन, इन पर थी सबकी नजर
नई दिल्ली
आखिर 6 दिसंबर को अयोध्या में वह सब हो गया, जिसकी सबको आशंका थी। लेकिन कोई ऐसा होते देखना नहीं चाहता था। फिर भी ऐसा हुआ। एक अतीत, एक इतिहास जिसे उस दिन का वर्तमान ‘इतिहास’ होते देख रहा था। उस घटना की कसक आज भी ताजा है। इतिहास को बदलनेवाली यह घटना अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को घटी थी।
चारों तरफ धूल ही धूल थी। यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था। अपार जनसैलाब से यही भ्रम हो रहा था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि भीड़ हजारों में थी या लाखों में। हां, एक बात जो उस पूरी भीड़ में थी, वह था-जोश और जुनून। इसमें रत्तीभर भी कमी नहीं थी। ऐसा लग रहा था-जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति अपने आप में एक नेता था। ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो… जैसे गगनभेदी नारों के आगे आकाश की ऊंचाई भी कम पड़ती दिख रही थी। यह सारा वाकया अयोध्या का था।
इसका अंदाजा शायद बहुतों को नहीं रहा होगा। लेकिन कुछ बड़ा होने जा रहा है, ऐसा वहां के माहौल को देखकर समझा जा सकता था। तभी वहां मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई। देखते ही देखते ढांचे के गुंबदों पर उनका कब्जा हो गया। हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे। जिसके हाथ में जो था, वही उस ढांचे को ध्वस्त करने का औजार बन गया। और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया। यह सब होने में करीब दो घंटे लगे या कुछ ज्यादा। केंद्र की नरसिंह राव सरकार, राज्य की कल्याण सिंह सरकार और सुप्रीम कोर्ट देखते रह गए। यह सब तब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर पाबंदी लगाई हुई थी।
कल्याण सिंह
उस समय कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने संसद में लिखित बयानों और वक्तव्य में विवादित स्थल को सुरक्षा देने का आश्वासन दिया था। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को भी भरोसा दिया था, पर वह उसे बचा नहीं सके। इस घटना के कुछ ही घंटों बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था।
पी.वी. नरसिंह राव
तब पी.वी. नरसिंह राव भारत के प्रधानमंत्री थे। माना जाता है कि इस घटना से पहले उनके पास उत्तर प्रदेश में केंद्र शासन लगाने की वाजिब वजहें थीं और उन्हें मस्जिद की सुरक्षा के लिए संभावित योजना भी सौंपी गई थी। लेकिन योजना पर अमल नहीं हो सका। घटना के बाद उन्होंने भाजपा शासित चार राज्यों की सरकार को बर्खास्त कर दिया।
उमा भारती
राम जन्मभूमि आंदोलन के समय उमा भारती भाजपा की एक फायरब्रांड नेता के रूप में उभरी थीं। वह घटना के समय अयोध्या में बीजेपी नेताओं के साथ उपस्थित थीं। जांच रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने वहां भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया था।
मुरली मनोहर जोशी
घटना के समय बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ मुरली मनोहर जोशी भी उपस्थित थे। सीबीआई की चार्जशीट में बताया गया कि 6 दिसंबर 1992 को वह मंच से कार सेवकों को विवादित ढांचे को गिराने के लिए प्रेरित कर रहे थे और भड़काऊ नारेबाजी कर रहे थे।