November 24, 2024

सिंघल को डांट न पड़ती तो 1987 में ही अपनी जगह से शिफ्ट हो जाती बाबरी मस्जिद

0

 
नई दिल्ली 

देश का सबसे बड़ा और बहुप्रतीक्षित फैसला शनिवार को सुबह साढ़े दस बजे आएगा. लेकिन, आजादी के बाद से ही अयोध्या मसले पर कोर्ट में किसी न किसी तरह का केस चलता आ रहा है. लेकिन मामले ने तेजी तब पकड़ी जब 6 दिसंबर 1992 को विवादित स्थल पर विध्वंस हुआ. उसके बाद से इस मामले से जुड़े पक्षकार अपने-अपने दावे करते रहे. लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता है कि अगर 1987 में विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अशोक सिंघल को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख बालासाहेब देवरस से डांट न पड़ती तो उसी समय अपनी जगह से बाबरी मस्जिद को  शिफ्ट कर दिया जाता.
इस बात का जिक्र अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह की किताब ‘अयोध्या – रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का सच’ किया है. शीतला सिंह अयोध्या विवाद सुलझाने वाली अयोध्या विकास ट्रस्ट के संयोजक भी रहे हैं. साथ ही फैजाबाद (अब अयोध्या) जिले से निकलने वाले अखबार जनमोर्चा के संपादक भी हैं. शीतला सिंह की किताब में इस बात का जिक्र किया गया है कि कैसे संघ प्रमुख देवरस विहिप महामंत्री अशोक सिंघल से बाबरी मस्जिद मसले पर नाराज हो गए थे. देवरस ने सिंघल को कड़ी डांट पिलाई थी.

शीतला सिंह की किताब में लिखा है कि अशोक सिंघल को डांट इसलिए पड़ी थी कि क्योंकि 27 दिसंबर 1987 को पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर अखबार खबर छपी थी कि रामभक्तों की विजय हो गई. कांग्रेस सरकार मंदिर बनाने के लिए विवश हो गई है. इसके लिए ट्रस्ट बनाया गया है. इसे राम मंदिर आंदोलन की सफलता बताया जा रहा है. उस समय एक तरीका यह निकाला गया था कि विदेशी तकनीक के जरिए बाबरी मस्जिद को बिना कोई नुकसान पहुंचाए, उसे उसकी जगह से हटाया जाना था. साथ ही राम चबूतरे से राम मंदिर का निर्माण शुरू करना था. इस खबर के साथ ही, पांचजन्य के मुख्यपृष्ठ पर विहिप महामंत्री अशोक सिंघल की फोटो छपी थी.

शीतला सिंह ने अपनी किताब के पेज नंबर 110 पर इस घटना का जिक्र किया है. उन्होंने केएम शुगर मिल्स के मालिक और प्रबंध संचालक लक्ष्मीकांत झुनझुनवाला के हवाले से इस घटना की पूरी कहानी लिखी है. झुनझुनवाला उस वक्त विहिप के वरिष्ठ नेता विष्णुहरि डालमिया के लिए कुछ कागजात लेने शीतला सिंह के पास आए थे. कागज लेकर दिल्ली चले गए. जब वे दिल्ली से वापस फैजाबाद आए तो उन्होंने देवरस और सिंघल वाली घटना शीतला सिंह को बताई.

लक्ष्मीकांत झुनझुनवाला ने बताया कि उस दिन दिल्ली में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के झंडेवालान स्थित मुख्यालय केशव सदन में एक बैठक हुई थी. इसमें संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस भी मौजूद थे. उन्होंने सबसे पहले अशोक सिंघल को बुलाया और पूछा कि तुम इतने पुराने स्वंयसेवक हो, तुमने इस योजना का समर्थन कैसे कर दिया?

सिंघल ने कहा कि हमारा आंदोलन तो राममंदिर के लिए ही था. यदि वह स्वीकार होता है तो स्वागत करना ही चाहिए. इस बात पर देवरस उन पर बिफर पड़े और कहा कि तुम्हारी अक्ल घास चरने चली गई है. इस देश में राम के 800 मंदिर हैं, एक और बन जाए तो 801वां होगा. लेकिन यह आंदोलन जनता के बीच लोकप्रिय हो रहा था. उसका समर्थन बढ़ रहा था, जिसके बल पर हम राजनीतिक रूप से दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति तक पहुंचते. तुमने इसका स्वागत करके वास्तव में आंदोलन की पीठ पर छुरा भोंका है. यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं होगा.

जब अशोक सिंघल ने बताया कि इसमें तो मंदिर आंदोलन के महंत अवेद्धनाथ, जस्टिस देवकीनंदर अग्रवाल सहित स्थानीय और बाहर के कई नेता शामिल हैं, तो देवरस ने सिंघल से कहा कि इससे बाहर निकलो, क्योंकि यह हमारे उद्देश्यों की पूर्ति में बाधक होगा.

दिलचस्प बात यह है कि यह खहक संघ के मुखपत्रों ऑर्गेनाइजर और पांचजन्य के अलावा उस समय देश के अन्य किसी भी समाचार माध्यम में नहीं छपा था. ज़ाहिर है, खबर के स्रोत विहिप के ही लोग थे. महंत नृत्यगोपल दास इस ट्रस्ट के अध्यक्ष थे. राम जन्मभूमि न्यास के अगुआ परमहंस रामचंद्र दास भी इसमें शामिल थे. ये दोनों विश्व हिंदू परिषद द्वारा चलाए जा रहे राम जन्मभूमि आंदोलन के शीर्ष नेताओं में थे.

‘अयोध्या – राम जन्मभूमि- बाबरी मसजिद का सच’ पुस्तक में लिखा है कि मुस्लिम नेता बाबरी मस्जिद को मौजूदा स्थान से आधुनिक तकनीक के द्वारा बिना तोड़े अयोध्या के परिक्रमा मार्ग पर ले जाने के लिए तैयार हो गए थे. इस तरीके से इमारत हटाने का काम दूसरे देशों में पहले भी हो चुका था. दुबई में एक अस्पताल निर्माण के लिए एक मस्जिद को दूसरे स्थान पर खिसकाया गया था. मुस्लिम नेताओं ने धार्मिक सहमति प्राप्त करने के लिए पांच प्रमुख मुस्लिम देशों के उलेमा (विद्वानों) को पत्र भी लिखे थे जिनमें से तीन से सहमति भी आ गई थी. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *