डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा द्वारा रचित गीत‘‘अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार‘‘ राज्यगीत घोषित
*मुख्यमंत्री ने डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की जन्मजयंती की पूर्व संध्या पर राज्योत्सव में की घोषणा*
*बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का छत्तीसगढ़ी भाषा अस्मिता की पहचान बनाने में रहा अमूल्य योगदान*
रायपुर, 03 नवम्बर 2019/ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज साईंस कॉलेज मैदान में आयोजित राज्योत्सव में डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा द्वारा रचित प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी गीत ‘‘अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार‘‘ को प्रदेश का राज्यगीत घोषित किया। इस राज्यगीत को राज्य शासन द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण शासकीय कार्यक्रम और आयोजनों के शुभारंभ में बजाया जाएगा। कल 4 नवम्बर को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की है जन्मजयंती है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, साहित्यकार एवं भाषाविद डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का जन्म सेवाग्राम वर्धा में 4 नवम्बर 1939 को हुआ था और 8 सितम्बर 1979 को उनका रायपुर में निधन हुआ। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, वस्तुतः छत्तीसगढ़ी भाषा-अस्मिता की पहचान बनाने वाले गंभीर कवि थे। हिन्दी साहित्य के गहन अध्येता होने के साथ ही, कुशल वक्ता, गंभीर प्राध्यापक, भाषाविद् तथा संगीत मर्मज्ञ गायक भी थे। उनके बड़े भाई ब्रम्हलीन स्वामी आत्मानंद जी का प्रभाव उनके जीवन पर बहुत अधिक पड़ा था। उन्होंने ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य का उद्भव विकास‘‘ में रविशंकर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य में कालक्रमानुसार विकास का महान कार्य किया। वे कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कथाकार, समीक्षक एवं भाषाविद थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह ‘‘अपूर्वा‘‘ की रचना की। इसके अलावा ‘‘सुबह की तलाश (हिन्दी उपन्यास)‘‘ छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास, हिन्दी स्वछंदवाद प्रयोगवादी, नयी कविता सिद्धांत एवं सृजन, हिन्दी नव स्वछंदवाद आदि ग्रंथ लिखे। उनके द्वारा लिखित ‘‘मोला गुरू बनई लेते‘‘ छत्तीसगढ़ी प्रहसन अत्यंत लोकप्रिय है। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा छत्तीसगढ़ के पहले बड़े लेखक है जो हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लिखकर मूल्यवान थाती सौंप गए। वे चाहते तो केवल हिन्दी में लिखकर यश प्राप्त कर लेते। लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ी की समृद्धि के लिए खुद को खपा दिया।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने सागर विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1966 में उन्हें प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन शोध प्रबंध के लिए पी.एच.डी. की उपाधि मिली। उन्होंने 1973 में पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान में एम.ए. की दूसरी परीक्षा उत्तीर्ण की तथा इसी वर्ष ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्भव विकास‘‘ विषय पर शोध प्रबंध के आधार पर उन्हें भाषा विज्ञान में भी पी.एच.डी. की उपाधि दी गई।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा द्वारा रचित गीत:
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
(अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया)
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां
(महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया)
सोहय बिंदिया सही, घाट डोंगरी पहार
(सोहय बिंदिया सही, घाट डोंगरी पहार)
चंदा सुरूज बने तोरे नैना
सोनहा धान अइसे अंग, लुगरा हरियर हे रंग
(सोनहा धाने के अंग, लुगरा हरियर हे रंग)
तोर बोली हवे जइसे मैना
अंचरा तोर डोलावय पुरवईया
(महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया)
सरगुजा हे सुग्घर, तोरे मउर मुकुट
(सरगुजा हे सुग्घर, जईसे मउर मुकुट)
रायगढ़ बिलासपुर बने तोरे बञहा
रयपुर कनिहा सही, घाते सुग्गर फबय
(रयपुर कनिहा सही, घाते सुग्गर फबय)
दुरूग बस्तर बने पैजनियाँ
नांदगांव नवा करधनियाँ
(महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया)
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पइयां
महूं विनती करव तोरे भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
(अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पइयां
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया)