जानें छठ पूजा, नहाय खाय से लेकर सूर्योदय के अर्घ्य की तिथि
दिवाली के बाद लोग छठ पूजा की तैयारियों में लग जाते हैं। ये पर्व दीपावली के ठीक बाद आता है। उत्तर भारत में छठ काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व की रौनक बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी देखने को मिलती है।
साल 2019 में इस पर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर से होगी। चार दिनों तक तक चलने वाले इस उत्सव का समापन 3 नवंबर को होगा। इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है।
छठ पर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर से प्रातः नहाए खाए के साथ होगी। इस दिन महिलाएं सुबह स्नानादि करने के बाद व्रत रखेंगी। इस दिन पूजा के लिए अनाज साफ़ करके उसे धूप में सुखाया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं एक बार फिर स्नान करती हैं और पूरे दिन में सिर्फ एक बार अन्न ग्रहण करती हैं। व्रती महिलाएं ही नहीं बल्कि पूरा परिवार सात्विक आहार का सेवन करता है। व्रती महिलाएं इस दिन कच्चे चूल्हे पर बनी रोटी और लौकी चने की दाल की सब्जी खाती हैं। इस दिन पूजा के बाद ही व्रत करने वाली महिलाएं केवल एक बार भोजन कर सकती हैं तथा अगले दिन खरना का प्रसाद ले सकती हैं।
1 नवंबर को है खरना
छठ पूजा के अगले दिन को खरना कहा जाता है। पहले दिन व्रती महिलाओं ने जिस अनाज को साफ़ करके धूप में सुखाया था उसे चक्की में पिसवाती हैं। इस दौरान अनाज की पवित्रता को बनाए रखने का पूरा प्रयास किया जाता है। इस दिन गुड़ की खीर बनाई जाती है। शाम को बनाए जाने वाले इन प्रसाद में चावल, दूध के पकवान के साथ ठेकुआ भी बनाया जाता है। छठी माई की पूजा के बाद व्रती महिलाएं ये सब प्रसाद के रूप में खाती हैं और ज्यादा से ज्यादा बंटवाती हैं।
सांझ अर्घ्य में देवी अस्ताचल की पूजा
पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं स्नान के बाद डाला अर्थात बांस की डलिया सजाती हैं। इस साल 2 नवंबर को डाला तैयार किया जाता है। इसमें पांच तरह के फल, सब्जियां, गन्ना, गाजर, मूली, चुकंदर, शकरकंद, अदरक को प्रसाद के तौर पर रखा जाता है। इसके अलावा भी व्रत रखने वाली महिलाएं डाला में दूसरी चीजें भी रखती रहती हैं। शाम होते ही वो अपना डाला लेकर नदी या तालाब के किनारे पहुंचती हैं। सूर्य के ढलने के साथ ही महिलाएं अपने डाले की चीजें चढाती हैं। इसके साथ ही वो सूर्य की पहली पत्नी देवी अस्ताचल का स्मरण करती हैं और आशीर्वाद मांगती हैं। सांझ में इस पूजा के बाद महिलाएं अपने घर आ जाती हैं और रात भर भजत कीर्तन करती हैं। इस साल अस्ताचल पूजा का समय 17:35:42 बजे है। इस पूजा में ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देना बहुत शुभ होता है।
दूसरे अर्घ्य और देवी उदयाचल की पूजा का समय
3 नवंबर को छठ का आखिरी दिन होगा। इस दिन व्रती महिलाएं निकलते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दिन सूर्य उदय का समय 06:34:11 बजे है। इस दिन भगवान सूर्य की दूसरी पत्नी की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं रात 3-4 बजे से ही पूजा की तैयारियां शुरू कर देती हैं। नदी पहुंचकर महिलाएं सूर्य निकलने से पहले ही कमरभर पानी में खड़ी हो जाती हैं। सूर्य की पहली किरण निकलते ही सूर्य को अर्घ्य देती हैं और इसके साथ ही चार दिवसीय इस पर्व का समापन हो जाता है। इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं जिसे पारण या परना कहा जाता है।