महापौर रायपुर की कुर्सी आसान नहीं
रायपुर
तब मोदी को वोट पड़े थे अब नहीं के शिगूफे पर भले ही तसल्ली दे रहे है कांग्रेस के विधायक लेकिन अंदरखाने जब पिछले लोकसभा की खाई का आकलन कर रहे हैं तो बेचैनी बढ़ रही है शहर के ही चार विधानसभा सीटों का आकलन करें तो सभी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर लगभग 50 से 65 हजार के बीच का था। वार्ड के दावेदार तो शुरू से ही अपनी कुर्सी की सलामती चाह रहे हैं जिसकी झलक लोकसभा चुनाव के दौरान कामकाज के बीच दिख गया था। दस साल तक लगातार कुर्सी पर बैठने का जवाब भी पेश करना होगा। चूंकि आगे दीपावली का त्यौहार और संभवत:राज्योत्सव के तत्काल बाद आदर्श आचारसंहिता लागू हो सकती है इसलिए गुणा भाग का दौर शुरू हो गया है।
यह तो जाहिर है कि प्रत्याशी दोनों ही दलों से कोई भी उतरे कांग्रेस की ओर से कमान विधायकगण सत्यनारायण शर्मा,कुलदीप जुनेजा,विकास उपाध्याय,पराजित प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल और वर्तमान महापौर प्रमोद दुबे तो भाजपा में सांसद सुनील सोनी,बृजमोहन अग्रवाल,राजेश मूणत,नंदे साहू,श्रीचंद सुंदरानी,प्रफुल्ल विश्वकर्मा के आसपास ही रहेगी। दोनों ही पार्टियों की रणनीति को देखें तो फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं इसलिए यही आखिरी मौका होगा अपना दमखम दिखाने का। शहरी सत्ता के बाद जब ग्रामीण सत्ता के लिए नए साल में चुनाव होगा तब तक परिस्थितियां काफी कुछ बदल चुकी होगी। राज्य सरकार के साल भर के कामकाज का आकलन भी लोग करेंगे। भाजपा आखिरी साख बचाने उतरेगी अन्यथा पूरी तरह पांच साल विपक्ष की भूमिका में हर जगह उपस्थिति दिखानी होगी। दोनों ही दलों में वार्ड के दावेदारों व कार्यकतार्ओं के बीत समन्वय बनाना भी बडी चुनोती रहेगी। इसलिए दोनों ही दल ठोस चेहरा तलाश रहे हैं ताकि पार्टी के अलावा कुछ वोट उनके नाम पर तो मिले।