November 23, 2024

उस गांव के स्कूल में तिलक लगाकर नवप्रवेशी बच्चों का स्वागत करेंगे मुख्यमंत्री जहां छात्र जीवन में स्कूल आने रोज तय करते थे 16 किमी का सफर’

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दुर्ग जिले के ग्राम मर्रा में आज प्रदेश स्तरीय शाला प्रवेशोत्सव

रायपुर-दुर्ग जिले के ग्राम मर्रा के नवप्रवेशी बच्चों के शाला का पहला दिन जीवन भर का अविस्मरणीय अनुभव रहेगा। उनके सीनियर और अब प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल तिलक लगाकर उनका स्वागत करेंगे। वे स्कूली बच्चों के साथ ही मध्याह्न भोजन भी करेंगे और स्कूल में एक कंप्यूटर लैब, आईसीटी कक्ष का उद्घाटन करेंगे।

मुख्यमंत्री आज 26 जून को दुर्ग जिले के विकासखण्ड पाटन के शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला, मर्रा में आयोजित प्रदेश स्तरीय शाला प्रवेशोत्सव कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। वे यहां प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शाला में नव-प्रवेशित विद्यार्थियों का तिलक लगाकर स्वागत करेंगे और उन्हें पाठ्यपुस्तकें और गणवेश का वितरण करेंगे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम करेंगे। इस अवसर पर गृह एवं लोक निर्माण मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे, वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गुरू रूद्र कुमार, लोकसभा सांसद श्री विजय बघेल, राज्यसभा सांसद सुश्री डॉ. सरोज पाण्डेय, विधायक सर्वश्री अरूण वोरा, देवेन्द्र यादव, विद्यारतन भसीन और आशीष छाबड़ा के विशिष्ट आतिथ्य में आयोजित किया गया है। यह कार्यक्रम शाला प्रांगन में सुबह 11 बजे से आयोजित होगा।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने अपने गृह ग्राम बेलौदी में 1967 से 1971 तक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की थी। इसके बाद वे छठवीं से मैट्रिक तक मर्रा स्कूल में पढ़े। उस दौर में उनको गणित पढ़ाने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक श्री हीरा ठाकुर याद करते हैं कि ’’पढ़ाई को लेकर उनमें काफी लगन थी। उस समय हर कक्षा में लगभग 100 विद्यार्थी होते थे इसलिए सबकी शंकाओं का समाधान क्लास में नहीं हो पाता था। मैंने बच्चों से कहा था कि जिन्हें शंका है वे रोज सुबह-सुबह आकर एक्सट्रा क्लास अटेंड कर लें। इन छात्रों में श्री भूपेश बघेल भी शामिल थे।

विद्यार्थी के रूप में श्री बघेल सुबह-सुबह चार किमी तक कभी साइकिल से आते और कभी बरसात की वजह से पैदल आते क्योंकि पगडंडी रास्ता था और काफी खराब हो जाता था। फिर बेलौदी लौटते और फिर साढ़े दस बजे स्कूल के समय में पहुंच जाते। इस प्रकार सोलह किमी रोज उन्हें साइकिल से अथवा पैदल तय करना होता।’’

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