October 27, 2024

धर्म :प्रेम के आगे तर्क नहीं चलता, वह अपने आप में पूर्ण है : राजन महाराज

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रायपुर,संतोषीनगर के बोरियाखुर्द में चल रहे रामकथा के छठे दिन बालकांड की समाप्ति और अयोध्या कांड की शुरुआत की कथा हुई। रामकथा सत्संग समिति के अध्यक्ष गजेन्द्र तिवारी ने बताया कि राजन महाराज ने शुक्रवार के कथा भगवान राम की मिथिला से अयोध्या वापसी, राजा दशरथ का भगवान राम को राजा बनाने का विचार करना, गुरुवर वशिष्ट से विचार-विमर्श, अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय, रानियों को राम को राजा बनाने का संदेश, कैकई का वचन मांगना, भगवान राम का वनगमन और केंवट संवाद कथा की व्याख्या की।
राजन महाराज ने कथा को विस्तार से बताया कि बारात कई दिनों तक मिथिला में ठहरी रही। राजा जनक, महाराज दशरथ से प्रतिदिन स्नेह पूर्वक आग्रह करते और राजा दशरथ ठहर जाते। कई दिनों बाद महर्षि वशिष्ठ , विश्वामित्र और सतानंद ने राजा जनक और दशरथ से कहा- `राजन देश को भी देखना है। अब अयोध्या चलें।` तब महाराज दशरथ राजा जनक से अयोध्या जाने की अनुमति मांगते हैं। भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुहन को बुलाकर कहते हैं- `बेटा जाओ अपनी सासु माता से अयोध्या जाने की अनुमति लेकर आओ।` यह सुनते ही भगवान राम तुरंत रनिवास में जाते हैं और भोजन करने के बाद मौका पाकर कहते हैं- `माता अब अयोध्या के राजा को अपनी जिम्मेदारी निभाना है, नगर वापस जाना है।` यह सुनते ही महारानी सुनैना बेटियों को बुलाती हैं और स्त्रीत्व का गुण सिखाती हैं। कहती हैं- `हमेशा सास-ससुर, परिवार के श्रेष्ठ जन और पति की आज्ञा का पालन करना, पति के आंखों को देखकर ही समझ जाना कि उन्हें कैसा प्रेम चाहिए।`
जब यह सूचना पूरे मिथिला में आग की तरह फैल गई। मिथिला की प्रजा का चेहरा मुरझाए हुए कमल की तरह हो गया। अयोध्या से मिथिला बारात पहुंचने में चार दिन लगे थे और उस चार दिनों में बारात जहां-जहां रूकी थी, वहां-वहां वापसी के वक्त भी बारात के ठहरने की व्यवस्था की गई। राजा जनक ने अपनी पुत्री को विदा करते वक्त कहा- `बेटी आज से तुम्हें दो कुलों की मान-सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाना है।` उस दिन राजा जनक, जो अपना सब कुछ त्याग चुके होते हैं माता सीता को गले लगाकर खूब रोते हैं। उन्हें उनका मंत्रिमंडल सांत्वना देता है और डोली बुलाकर माता को विदाई दी जाती है। विदाई के वक्त महाराज जनक अपनी पुत्री को खूब दहेज देते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में लिखा है कि 25 हजार रथ, 1 लाख घोड़े, कई हजार हाथियां और रथ भरकर आभूषण दहेज में देते हैं।


राजन महाराज ने बताया कि बारात अयोध्या पहुंची। यहां पर खूब स्वागत हुआ। अगले दिन उचित मुहूर्त निकालकर कनकन मौर छोड़ाने का कार्यक्रम तय किया जाता है। कनकन मौर होता है। अयोध्या की जनता भगवान राम के राजा बनने की प्रतीक्षा करती है। यह बात राजा दशरथ को आभास हो जाता है और वे सीधे महर्षि वशिष्ठ से विचार-विमर्श करने चले जाते हैं। महर्षि वशिष्ठ को राजा दशरथ अपनी व्यथा बताते हैं और दूसरी ओर वशिष्ठजी अपने त्रिनेत्र से मुहूर्त देखते हैं उन्हें यह दिखाई देता है कि भगवान का राजतिलक तो चौदह वर्ष बाद होगा, लेकिन वे एक रास्ता राजा दशरथ को दते हैं और कहते हैं आप जिस वक्त राम का राजतिलक करेंगे वह समय शुभ गन जाएगा। वे ऐसा इसलिए कहते हैं कि राजा दशरथ तुरंत जाकर राम का राजतिलक कर देंगे, लेकिन राजा दशरथ उसे अगले दिन पर टाल देते है, अगला दिन तो आता है पर राजा दशरथ के लिए नहीं आता। यह सूचना पाकर महारानी कैकई की सखी मंथरा की बातों में आकर माता कैकई भरत के लिए राज सिंहासन और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लेती हैं। यहां पर कहा जाता है कि उन्हें भगवान की लीला की जानकारी होती है, इसलिए वे जानबूझकर ऐसा करती हैं। यदि भगवान राम राजा बन जाते तो वे रावण का वध कैसे करते?
राजन महाराज ने बताया, भगवान राम यह जानकर तुरंत माता कौशिल्या से वन पर जाने की अनुमति मांगते हैं। माता कहती हैं कि यदि यह फैसला तुम्हारे पिताजी का होगा तो मैं तुम्हें जाने से मना करती हूं, लेकिन यदि यह फैसला तुम्हारी माता कैकई का भी है तो मैं तुम्हें जाने से नहीं रोकूंगी। यह सुनकर लक्ष्मण और माता सीता भी वन पर जाने तैयार हो जाते हैं। दोनों भगवान राम के साथ काका सुमंत के साथ आधी रात को अयोध्या से वनवास के लिए जाते हैं, क्योंकि यदि अयोध्यावासी उन्हें वनवास जाते देख लिए तो जाने नहीं देंगे। भगवान गंगा किनारे पहुंचते हैं। यहां पर वे रात्रि विश्राम करते हैं। इस वक्त गंगा किनारे के राजा निषाद राज अपने प्रहरी भगवान की निगरानी के लिए लगा देते हैं। कहीं भगवान रात में अयोध्या से जैसे निकले वैसे ही यहां से भी न चले जाएं, इस डर से। इस दिन पूरी रात लक्ष्मण विश्राम नहीं करते और वहां पर प्रहरी निषाद से वार्तालाप करते हैं और भगवान की कथा सुनाते हैं। यह कथा निषाद

राज सुन लेते हैं अगले दिन वे भगवान से कहते हैं कि प्रभु आज आपको हम गंगा पार करवाएंगे। इसलिए सभी नाविकों को आज घाट पर आने के लिए मना करवा दिया जाए। भगवान इसमें हामी दे देते हैं। पूरे गांव में हांका लगा कर सभी नाविकों को घाट पर आने के लिए मना किया जाता है। मना करने के बाद निषाद राज भगवान से कहते हैं हम आपको गंगा पार नहीं कराएंगे। क्योंकि आपने एक पत्थर पर पैर रखा तो वह नारी बन गई। मेरी नाव भी यदि नारी बन गई तो घर कैसे जाऊंगा। पत्नी कहेगी नाव बेचकर दूसरी शादी कर लिए। इसलिए मैं अपनी नाव में आपको नहीं बैठाऊंगा। यह बात सुनकर लक्ष्मणजी क्रोधित हो गए और कहे यदि आप नहीं जाएंगे तो हम दूसरे नाविक को बुलाएंगे । निषाद राज कहते हैं कि बुलाकर देखिए भैया कोई आता है क्या देखता हूं मैं।
राजन महाराज ने बताया कि निषाद राज ने भगवान को खूब इंतजार करवाया, फिर उनका पांव पखार कर उन्हें नाव से गंगा पार करवाया। भगवान राम गंगा पार कर एक वृक्ष के नीचे विश्राम करते हैं और आज की रामकथा का विश्राम भी यहीं पर होता है।
00 ये थे उपस्थित
समिति के अध्यक्ष गजेन्द्र तिवारी ने बताया कि कथा के दौरान संरक्षक दशरथ प्रसाद शुक्ला, धीरेन्द्र कुमार शुक्ला, बृजलाल गोयल और सुभाष तिवारी उपस्थित थे। उन्होंने बताया कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष मित्रेश कुमार दुबे, उपाध्यक्ष अश्वनी कुमार साहू, विकास मिश्रा, सचिव शैलेश शर्मा, कोषाध्यक्ष विजय शंकर पाण्डेय, सह-कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र तिवारी, महासचिव गौतम ओझा और सदस्य नरेन्द्र पाठक भी उपस्थित थे।

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