एक गांव ऐसा जहाँ तीन दिन बाद मनाया जाता है दशहरा
पिछले पांच दशकों से चली आ रही है परंपरा, रामलीला के साथ ही होता है रावण दहन
रायपुर,वैसे तो पुरे भारत में विजयादशमी का पर्व दशहरा रामनवमी के पश्चात दशमी के तिथि वाले दिन मनाया जाता है, लेकिन दुर्ग जिला मुख्यालय से 11 किमी. की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित ग्राम बोरई में दशहरा दशमी को नहीं बल्कि तीन दिन बाद क्वांर माह के तेरस के दिन दशहरा मनाया जाता है। यह परंपरा पांच दशकों से जारी है। यहां रामलीना के साथ ही रावण दहन भी इसी दिन किया जाता है।
तेरस के दिन दशहरा मनाने के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। गांव के बुजुर्गों के मुताबिक लगभग 50 बरस पहले उन दिनों गांव के लोगों द्वारा ही गांव में रामलीला का मंचन ११ दिनों तक किया जाता था, इसके प्रसंग भी काफी रोचक हुआ करते थे। 60 के दशक मे दाऊ स्व. भीषम लाल देशमुख ने (उप्र के झांसी से जो पहले सीपी बरार यानि संयुक्त मप्र का एक का एक प्रमुख शहर था) गांव की रामलीला के लिए पहली बार विभिन्न वेषभूषा, परिधान, मुखौटा और हारमोनियम सहित अन्य साज सज्जा के दूसरे सामान लाकर इस रामलीला को भव्यता प्रदान की थी | राम लीला में अनुशासन और सख्त मैनेजर साथ मे जबरदस्त गायन शैली के धनी स्व नोहर सिंह यादव ने उक्त रामलीला को 70 के दशक मे पूरे इलाके में मशहूर कर दिया था।
यही वो खास बातें थी कि आसपास के कई गांवों से इस रामलीला को देखने भारी भीड़ जमा होती थी। इसी दशक मे रामलीला के सहायक पात्रों मे चुन्नूलाल सिन्हा और मनहरण ठाकुर के मसकरे अभिनय लोगों को आज भी याद आते हैं। प्रसिद्धि इतनी बढ़ी की आसपास के गांव के लोग रोज रामलीला देखने बोरई आते थे। दूर गाँव के लोग भी अपने सगे सम्बन्धियों के यहां आकर रुकते थे उस समय ऐसा कोई घर नही होता था जहाँ मेहमान न रहते हों और एक दिन आस-पास के ग्रामीण इकठ्ठा होकर बोरई के ग्राम प्रधान के पास एक प्रस्ताव लेकर पहुंचे कि सभी जगह दशमी को एक साथ दशहरा उत्सव के छोटे आयोजन होते है। इसमें लोग शामिल होते हैं लेकिन बोरई के रामलीला को कोई छोड़ना भी नही चाहता। अगर बोरई का आयोजन तीन दिन बाद रखा जाए तो और अधिक लोगों का समावेश होगा। इतना सुनते ही ग्राम प्रधान ने तुरंत ही हामी भर दी और तब से आजतक रामलीला की वजह से ही तेरस की तिथि के दिन दशहरा उत्सव मनाने शुरुआत हुई जो एक परंपरा के रूप में आज तक जारी है।
हालांकि आज आधुनिकता की दौड़ में अब कुछ धार्मिक व सामाजिक परम्पराएं पीछे छुटती जा रही है साथ ही व्यस्तताओं के चलते आयोजन भी सिमटने लगे हैं। ११ दिनों का आयोजन अब ३ दिनों में सिमट कर रह गया है, लेकिन बोरई में आज भी लोगों की अपार भीड़ के बीच तेरस को उतने ही जोश खरोश के साथ विजयदशमीं का पर्व मनाया जाता है।
अपने किशोरावस्था में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले केवेंद्र देशमुख और देवेन्द्र सिन्हा अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि उन दिनों सारें कलाकारों को तीन महीने पहले ही उनके संवाद दे दिए जाते थे। गणेश पक्ष से ही रिहर्सल करना शुरू कर देते थे। वे कहते हैं कि उन्हें जब भगवान राम के रूप में पूजा जाता था तब वे अपने आपको अलौकिक दुनिया से जुड़े हुए महसूस करते थे। ऐसे आयोजन हमारी धार्मिक परम्पराओं का धरोहर है। वर्तमान में ग्राम प्रधान रिवेंद्र यादव का मानना है कि आधुनिकता की दौड़ में पारंपरिक आयोजनों का स्वरुप जरूर परिवर्तित हुआ है, लेकिन युवा पीढ़ी पूर्वजों की परम्पराओं के निर्वहन में लगे हैं। इस वर्ष भी चुनावी माहौल में विजयादशमी का पर्व ग्राम बोरई में बड़े ही हर्षोल्लास के सांथ मनाया जाएगा