सुख में सावधान, उसका नतीजा दुःख होगा : जैनाचार्य विजय कीर्तिचन्द्र
रायपुर, जैनाचार्य विजय कीर्तिचन्द्र ने कहा कि संसार के सुख में सावधान हो जाएं। जितना हो सके उसे छोड़ें और श्रावक-श्राविका बनें। ऐसा करने से पुण्य मिलेगा, जिससे अगले भव में मोक्ष साधक बनेंगे और पूर्णता को प्राप्त कर सकेंगे।
आचार्य ने उक्त विचार आज विवेकानंद नगर स्थित संभवनाथ जैन मंदिर प्रांगण की धर्मसभा में भगवान महावीर के समकालीन पट्टशिष्य़ धर्मदास रचित आगम ग्रंथ उपदेश माला पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संसार के सुख में एक कलंक है कि उसका परिणाम दुःख होता है। जीवन के चार प्रमुख दुःख है। जन्म दुःख है। रोग दुःख है। मृत्यु दुःख है। यहां तक कि जन्म से मरण के बीच प्रत्येक जीवात्मा को भूख की वेदना सहनी पड़ती है। इसी तरह अनंतकाल से अनंत जीवात्माएं दुःख भोगती रहती हैं। दुःख के समय तिनके का सहारा सिर्फ प्रभु का मार्ग बताया गया है।आचार्य़ ने कहा कि जीवन में वैराग्य के लिए जैन धर्म के तीन ग्रंथ उपदेश माला, उपमितिभव प्रपंचा और सम्रादित्यकहा पढ़ना चाहिए । अगर इन से भी वैराग्य न उपजे तो समझ लीजिए कि कठोर आत्मा है और उसका उद्धार नहीं हो सकता है। संसार में मल का कीड़ा भी मल को स्वर्ग मान लेता है। वह मानता ही नहीं कि उससे ऊपर भी कोई तत्व है। लेकिन इसे सुख नहीं माना जा सकता है। संसार में आपका पुण्योदय चल रहा हो, सुख मिल रहा हो लेकिन मृत्यु का दुःख तो आएगा ही। ये वेदना प्रत्येक जीवात्मा को भोगनी पड़ती है। ये पूरा का पूरा संसार दुःखमय है।
आचार्य ने कहा कि धन भोगार्थी कितने कष्ट उठा कर धन एकत्र करते हैं। मर-मर कर, कमा-कमा कर अमीर बनते हैं। सत्ता भी निष्ठुरता से मिलती है और जो मिले उससे कम लगती है। इतना सब होने के बाद उसे छोड़ने में पीड़ा होती है। वहीं गरीब का जीवन ही क्या होता है। टूटी-फूटी चारपाई। आधा-अधूरा घर। गिनती का धन। इसे छोड़ने में गरीब को मुश्किल नहीं होती है। धन,सम्पत्ति, सत्ता, स्त्री, परिवार यहां तक की शरीर भी यहीं छूट जाता है। फिर भी हमारा ममत्व कम नहीं होता है। इस तरह हम अनंत भव में भटकते रहते हैं।आचार्य़ ने कहा कि संसार खतरनाक है। एक कदम के बाद दूसरा कदम उठेगा कि नहीं पता नहीं। एक कौर के बाद दूसरा निवाला भीतर जाएगा कि नहीं निश्चित नहीं, लेकिन हम योजनाएं सौ वर्षों की बनाते हैं। जो तुम्हारे हैं, वही तुम्हें फूंकेगे। सिकंदर ने सारी दुनिया जीती, धन, हीरे-पन्ने, मोती-माणिक, रूपसियों को इकट्ठा किया लेकिन कोई उसके साथ नहीं गया। सिकंदर की मौत के बाद उसने अपने हाथ बाहर निकालने का हुक्म दिया। मैं कुछ भी लेकर नहीं आया था, कुछ भी लेकर नहीं जा रहा हूं। मृत्यु के समय कोई डाक्टर नहीं जो मृत्यु को स्थगित कर दे। कोई वकील नहीं जो स्टे आर्डर दिला दे। मुत्यु में कोई साथ चलना चाहे तो भी नहीं चल सकता है। मृत्यु में सिर्फ ज्ञान, दर्शन और चरित्र साथ चलते हैं।
आचार्य ने कहा कि प्रत्येक सुख दुःख में परिवर्तित होता है। दुःख मृत्यु के रूप में आता ही है। जितना सुख को भोगोगे संसार की अभिवृद्धि करोगे। भोग से आसक्ति होती है। सुख के पांच परिणाम होते हैं। पहला सुख के अंदर क्लेश उत्पन्न होता है। किसी भी सुखी परिवार के अंदर क्लेश होते हैं। दूसरा-सुख में भोग की आसक्ति बनती है। तीसरा मरण के समय असमाधि मिलती है। चौथा परलोक में दुर्गति मिलती है। और पांचवा सुख भव भ्रमण कराता है। कितना भी सुख मिले वह दुःख बनेगा इसको सिर्फ धर्म बचा सकता है। धर्म के बिना करोड़पति भी दुखी है। इसलिए धर्म करें श्रावक-श्राविका बनें।
चातुर्मास समिति के चंद्रप्रकाश ललवानी ने बताया कि आज की धर्म सभा में अट्ठाई के तपस्वी दिलीप सिसोदिया और नीता बैद का बहुमान किया गया। 12 अक्टूबर को ब्रह्ममुहूर्त 5 बजे प्रभु मिलना का कार्यक्रम किए जाने की घोषणा की गई है। आज का दूसरा तेला उमेद झाबक का था।