इन योगों में होता है संतान प्राप्ति का योग
रायपुर ,प्राचीन काल से लेकर आज तक संतान की अपेक्षा किसे नहीं है, चाहे पैसा वाला हो या गरीब आदमी हो अपना वंश बढ़ाना सभी चाहते है किन्तु कुछ लोगों को दुर्भाग्यवश यह सुअवसर नहीं मिल पाता। आज संतान प्राप्ति के कुछ विशेष योगों के विषय में प्रसिद्ध ज्योतिषी डॉ. विश्वरँजन मिश्र बताएँगे-
पंचम भाव संतान का भाव है | पंचम भाव पर यदि बलवान बृहस्पति (धनु, कर्क या मीन) की द्रष्टि है तो पुत्र अवश्य प्राप्त होगा | संतान निरोगी, धार्मिक, भाग्यशाली, बुद्धिमान और तेजस्वी होगी | यदि पंचम भाव पर क्रूर अथवा पाप ग्रहों की द्रष्टि है तो संतान विलम्ब से होगी |
पंचमेश- पंचमेश यदि 6, 8 या 12वें भाव में है तो संतान कष्ट अवश्य होता है और यदि इस पंचमेश पर पाप ग्रहों कि द्रष्टि हो तो संतान निश्चित तौर पर विलम्ब से होती है | पंचमेश पर यदि बलवान गुरू (धनु, कर्क या मीन) की द्रष्टि है तो पुत्र सुख अवश्य ही प्राप्त होता है |
पंचम भाव कारक ‘गुरू’-पंचम भाव कारक ग्रह गुरू है | कुंडली में पंचम भाव या पंचमेश पर गुरू कि द्रष्टि है तो पुत्र सुख अवश्य प्राप्त होता है | धनु, कर्क या मीन राशि में स्थित गुरू की दृष्टी यदि पंचम भाव व पंचमेश दोनों पर हो तो प्रथम संतान पुत्र की संभावना अधिक हो जाती है | गुरू पर पाप ग्रहों शनि, राहु आदि की दृष्टी से संतान विलंब से होती है |
पंचम से पंचम नवम भाव तथा नवमेश- पंचम से पंचम स्थान भी संतान हेतु उत्तरदायी होता है | यदि भाग्येश शुभ होकर, उच्च या स्वराशि का केन्द्र या त्रिकोण में हों तथा भाग्य भाव का कारक गुरू व सूर्य भी बलवान हो तो श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है |
गुरू से पंचम भाव व् उसका स्वामी- गुरू जिस राशि में बैठा है वहां से पंचम भाव या उसके स्वामी पर गुरू की दृष्टी हो तो भी पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है
विभिन्न लग्नों में संतान योग-
मेष लग्न में सूर्य पर गुरू की दृष्टि हो तो पुत्र अवश्य प्राप्त होता है |
वृष लग्न में सामान्यतः प्रथम संतान कन्या होती है
मिथुन लग्न में तृतीय शुक्र व नवम गुरू हो तो प्रथम संतान पुत्र होता है |
कर्क लग्न में, लग्न में गुरू व पंचम में मंगल हो तो श्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति योग होता है |
वृशिच्क लग्न में नवम गुरू तथा लग्न में मंगल हो तो श्रेष्ठ संतान योग होता है |
धनु लग्न में गुरू व भाग्य स्थान में मंगल हो तो श्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति योग होता है |
अनुभव पर आधारित तथ्य-
धनु लग्न में पंचम सूर्य (स्त्री कुंडली में) व सप्तम गुरू से प्रथम कन्या संतान होती है |
यदि जन्म नश्रत्र व चंद्र रशि स्त्री व पुरुष दम्पति की एक हो तथा गुरू की दृष्टि पंचम भाव या पंचमेश पर न हो तो निशचित तोर पर प्रथम संतान कन्या होती है |
नोट- इस स्थिति में यदि कन्या राशि हो तो योग 100% फलित होता है |
मिथुन लग्न में पंचमेश शुक्र उच्च का हो उस पर गुरू कि दृष्टि न हो तो प्रथम कन्या संतति होती है |
नोट- इस स्थिति में कन्या संतति की संख्या भी अधिक होती है |
पंचम भाव में अकेला गुरू हो, किसी ग्रह से दृष्ट न हो तो पुत्र प्राप्त नहीं होता | (कारको भाव नाशयः |)
पंचम भाव में केतु हो (स्त्री की कुंडली में) तथा उस पर गुरू कि दृष्टि न हो तो प्रथम संतान आपरेशन से होती है |
वृष लग्न में पंचम भाव में अकेला बुध स्थित हो तो गर्भपात करवाता है |
संतान प्राप्ति में विलम्ब के कारण-
पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में गया हो |
पंचमेश पर राहु केतु या अन्य पाप ग्रह मंगल, शनि की दृष्टि हो |
पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो |
पंचम भाव पाप कर्तरी योग में हो |
गुरू 6, 8, 12 भाव में हो तथा पाप ग्रहों से देखा जाए |
कुंडली में कालसर्प योग हो |
कुंडली में पैतृक दोष हो आदि कारणों से संतान विलम्ब से होती है |
संतान प्राप्ति हेतु सर्वश्रेष्ठ समय-
कुंडली में जब पंचमेश कि महादशा या अन्तद्रशा चल रही हो |
लग्न, नवम या एकादश में स्थित गुरू की महादशा/अन्तद्रशा हो |
लग्न कुंडली में पंचमेश के ऊपर से गुरू का भ्रमण हो |
गोचर में गुरू का भ्रमण लग्न, पंचम, नवम या एकादश भाव से हो रहा हो |
गुरू के अष्टक वर्ग में जिस राशि में सर्वाधिक शुभ बिंदु हों, उस राशि के लग्न में व्यक्ति यथासमय गर्भाधान हेतु समागम करे तो पुत्र प्राप्ति की संभावना अधिक होती है |
गोचर में गुरू धनु, कर्क या मीन राशि में हो |
गोचर में शुक्र अस्त न हो |
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भविष्यवक्ता
(पं.) डॉ. विश्वरँजन मिश्र, रायपुर
एम.ए.(ज्योतिष), रमल आचार्य, बी.एड., पी.एच.डी.
मोबाईल :- 9806143000,
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