पानी बचाने छोटी-छोटी योजनाएं उपयोगी:जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल
छत्तीसगढ़ जल चिंतन-2018’ पर सम्मेलन आयोजित
जल संसाधन मंत्री ने किया राजधानी रायपुर में आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन का शुभारंभ
विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों तथा जलदूतों ने पानी बचाने के उपायों पर किया चिंतन
रायपुर, जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने पानी को बचाने और बढ़ाने के लिए कम लागत वाली स्थानीय स्तर पर उपयोगी छोटी-छोटी योजनाएं बनाने पर जोर दिया है। श्री अग्रवाल आज राजधानी रायपुर में राज्य शासन के जल संसाधन विभाग द्वारा आयोजित ‘छत्तीसगढ़ जल चिंतन – 2018’ सम्मेलन के शुभारंभ सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से सम्बोधित कर रहे थे। श्री अग्रवाल ने कहा कि जल संरक्षण की छोटी-छोटी योजनाएं गांव या ग्राम पंचायत स्तर की होनी चाहिए। ऐसी योजनाओं में आम जनता की भागीदारी होगी और उनमें जागरूकता आएगी। दुनियाभर में इस ज्वलंत समस्या का समाधान करने जन-जागरूकता की सबसे ज्यादा जरूरत बताई जा रही है। छोटी योजनाओं से यह जरूरत भी पूरी हो सकती है। देशभर के विषय विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और जल दूतों ने सम्मेलन में दिन भर पानी बचाने के उपायों पर चिंतन किया।
जल संसाधन मंत्री श्री अग्रवाल ने सम्मेलन में जल संरक्षण एवं जल संवर्धन के लिए नदी-नालों, तालाबों और जल संरक्षण की अन्य संरचनाओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता बताई । उन्होंने कहा कि देश के हर गांव के आसपास छोटे बड़े नाले बहते हैं। आज हमें कई जगह देखने को मिलता है कि नदी-नालों की चौड़ाई कम होने के साथ-साथ वे उथले हो रहे हैं। तालाबों के साथ-साथ नदी-नालों के गहरीकरण के लिए भी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। गांवों में तालाबों की श्रृंखला होती है। अब तालाब भी सिमटते जा रहे हैं। इस तरह की संरचनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए योजनाएं बनायी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी भी पर्याप्त मात्रा में बारिश हो रही है। बरसात के पानी को रोककर सतही और भू-जल बढ़ाने की सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए कारगर उपाय करना आवश्यक है। पुराने खराब हो चुके ट्यूबवेल के जरिये भी भू-जल को बढ़ाया जा सकता है। इस दिशा में भी कार्य करने की आवश्यकता है। सम्मेलन का आयोजन वाटर डाईजेस्ट के सहयोग से किया गया है।
श्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि बूंद-बूंद पानी का सदुपयोग ही जल संरक्षण का सबसे अच्छा उपाय है। सिंचाई जलाशयों में अधिक मात्रा में गाद जमा होने से इनकी जल भरण क्षमता कम होती जा रही है। इसी कारण सिंचाई जलाशयों से उनकी क्षमता के अनुरूप सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है। छोटे-बड़े सिंचाई जलाशयों की साफ-सफाई व मरम्मत की जरूरत है। श्री अग्रवाल ने कहा कि वेस्ट वाटर रियूज और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
जल संसाधन मंत्री ने कहा कि पानी को बचाने और बढ़ाने के जितने उपायों पर आज चर्चा हो रही है। इन सभी उपायों पर प्रदेश सरकार छत्तीसगढ़ में मजबूती से काम कर रही है। छत्तीसगढ़ में पानी की हर बूंद का सदुपयोग करने के लिए जल संसाधन विभाग द्वारा माइक्रो एरिगेशन योजना शुरू की गई है। नदी में व्यर्थ बहने वाले पानी और एनीकटों में संग्रहित पानी से आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने सामुदायिक सिंचाई योजना चल रही है। वर्तमान में 10 माइक्रो एरिगेशन योजना निर्माणाधीन है। जल संसाधन विभाग की योजनाओं में भी जल संरक्षण एवं वितरण में नई और किफायती तकनीक अपनाकर जल उपयोग की क्षमता बढ़ायी गई है। जल संरक्षण की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए जा रहे उल्लेखनीय कार्याें के लिए केन्द्र सरकार ने प्रदेश को इस वर्ष ’इनोवेटिव एप्रोच इन एरिगेशन पोटेंशियल क्रियेशन एंड मास अवेयरनेस बिल्डिंग एंड रीवर कंजरवेशन’ पुरस्कार दिया है।
जल संसाधन मंत्री ने कहा कि पानी बचाने के उपायों में फसल चक्र परिवर्तन भी शामिल हैं। किसानों को कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। श्री अग्रवाल ने कहा कि सिंचाई, पेयजल और निस्तारी के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराने सतही और भू-जल के सदुपयोग के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए। उन्होंने छत्तीसगढ़ जल चिंतन 2018 सम्मेलन की सराहना करते हुए उम्मीद जाहिर की कि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के विमर्श से पानी को बचाने के उपायों के संबंध में जो भी सुझाव प्राप्त होंगे, वह पूरे देश के लिए उपयोगी साबित होंगे।
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव श्री यू.पी. सिंह ने कहा कि जल संरक्षण एवं जल संवर्धन की दिशा में प्रबंधन की महती भूमिका होती है। वाटर रिसोर्स मैनेमेंट और डिमांड साइड मैनेजमेंट जरूरी है। श्री सिंह ने बताया कि केन्द्र सरकार भू-जल के संरक्षण के लिए अटल भू-जल योजना ला रही है। इस योजना के जरिये हर गांव में भू-जल प्रबंधन के लिए काम किया जाएगा। बरसात के पानी को धरती के अंदर संग्रहित करने के लिए अनेक पहलुओं पर काम किया जाएगा। गांव में ही बारिश के पानी का हिसाब रखा जाएगा। भू-जल स्तर पर निगरानी रखी जाएगी। गांव स्तर पर खेती के लिए जरूरी योजनाएं बनेंगी। गांवों के सतही और भू-जल की उपलब्धता के आधार पर उपयुक्त फसल लेने की कार्य योजना बनेगी। सिंचाई की 65 प्रतिशत जरूरत भू-जल से ही पूरी हो रही है। इस स्थिति में भू-जल बढ़ाने के लिए सबसे अधिक और तेज प्रयास होने चाहिए।
जल संसाधन विभाग के सचिव श्री सोनमणि बोरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में उपलब्ध जल संसाधन को सिंचाई के लिए सही ढंग से उपयोग करने के लिए जल संसाधन विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ जल समृद्धि अभियान शुरू किया गया है। अभियान के अंतर्गत प्रदेश के तीन हजार से अधिक छोटे-बड़े जलाशयों की जियो टेगिंग की गई है। जियो टेकिंग की रिपोर्ट के आधार पर इन जलाशयों की वर्तमान क्षमता का परीक्षण किया जा रहा है। रिपोर्ट के आधार पर यह भी देखा जा रहा है कि इन जलाशयों से रूपांकित क्षमता के अनुरूप सिंचाई सुविधा क्यों नहीं मिल रही है। अभियान के तहत जरूरी मरम्मत और अन्य कार्य कराकर इन जलाशयों की क्षमता का 80 प्रतिशत प्राप्त करने के लिए कार्य-योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के 10 आकांक्षी जिलों में सिंचाई क्षमता बढ़ाने विशेष जोर दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार 20 लाख हेक्टेयर तक सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए योजना बनाकर कार्य कर रही है। नदियों को जोड़ने की दिशा में भी प्रदेश में गतिविधियां शुरू हो गई है। सूक्ष्म सिंचाई प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जा रहा है। सिंचाई की छोटी-छोटी योजनाएं बनाकर हर 10-10 गांवों में सिंचाई व्यवस्था करने कार्रवाई हो रही है।
दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के निदेशक एवं नीति आयोग के सदस्य श्री अतुल जैन ने देश के विभिन्न राज्यों के अनेक गांवों और इलाकों का उदाहरण देकर जल संरक्षण और संवर्धन का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों के पारम्परिक ज्ञान एवं तरीके ही जल संरक्षण और जल संवर्धन के लिए बेहतर साबित हो रहे हैं। पानी बचाने के लिए गांवों की जमीन और वहां के निवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आंकलन करना जरूरी है। पानी का उपयोग करते समय शोषण और दोहन का अर्थ समझना होगा। अनुशासित ढंग से पानी का उपयोग करने जन-जागरण आवश्यक है। पानी की एक-एक बूंद को बचाने आम लोगों को भागीदारी होनी चाहिए। पानी के सदुपयोग के उपायों से ज्यादा संरक्षण के लिए उपाय किए जाने चाहिए। केन्द्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं वाटर डाइजेस्ट के श्री पण्ड्या ने भी जल संरक्षण एवं जल संवर्धन पर अपने विचार रखे।