क्या शराबबंदी करके देश की संस्कृति को बचाया जा सकता है ?
नशे की आंधी में मौत को गले लगा रहे समाज को नई राह मिल सके:आफाक
लखनऊ | शराब जैसा नशा इंसान के लिए हानिकारक के साथ-साथ घातक भी है, इससे समाज पर बुरा असर पड़ता है जिसके कारण सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी है किसी को जान से मारने में पहले शराब का इस्तेमाल होना, उसके बाद शराब के नशे में ही ज्यादातर लोग महिलाओं और लड़कियों की इज्जत लूटते हैं शराब के नशे में इंसान अपने होश में नही होता बल्कि नशे में होता है जिसके कारण वो अपने आपको किसी बेताज बादशाह व अंडरवर्ड के डॉन से कम नही समझता और यही वजह अपराध की दुनिया में उसको ढकेल देती है, ऐसे में इंसान बुराई और अपराध की तरफ निकल पड़ते हैं जिससे आये दिन वो नशे की हालत में अपने वाहन से लोगों को कुचलते हुए या फिर अकेली लड़की को पाकर उसका बलात्कार करते हैं जब तक शराब का नशा होता है तब तक तरह-तरह के अपराध उसके अंदर जन्म लेते हैं और सबसे अहम बात ये है कि ऐसा नशा जो बहुत सारे अपराधों को इंसान से करवाता है वहीं, समाज में नशे को लेना बहुत आसान है दुकाने खुली है आसानी से लोग जाकर शराब पीकर नशे को अपने अंदर उतारते हैं, नशे को लेने के लिए सुबह और शाम महफिले व माहोल बनाये जाते पार्टी, फंक्शन से पहले नशे पर चर्चाएं होती हैं कितनी-कितनी और किसकी तरफ से शराब पिलाई जायेगी, इस नशे में अमीर गरीब सभी शामिल हैं और अपनी हैसियत के अनुसार शराब पी रहें हैं, शराब सिर्फ एक नशा ही नही बल्कि परिवार की सुख-शान्ति और उसकी अर्थ व्यवस्था के लिए भी खतरनाक है, शराब की लत लग जाने पर एक आदमी परिवार व समाज तथा अपने आप को भूल जाता है और वो अपराध की ओर आसानी से प्रवत्त होता है, शराब पीने के बाद इंसान में हार्मोन्स तेजी से बढ़ जाते हैं जिनके कारण इंसान जल्द ही उत्तेजित होकर अपराध की नींव डालने लगता है शायद यही कारण है महिलाओं के अपहरण और बलात्कार की घटनाएं दिनो दिन बढ़ती जा रही है, कहीं चोरी, चैन झपटी, लूटमार और राहजनी की घटनाएं बढ़ रही हैं शादी ब्याह हो या बच्चे का नामकरण संस्कार या किसी भी उत्सव का अवसर पर महंगी से महंगी शराब पीने या पिलाने का चलन घर-घर में है, सोंचने और गौर करने की बात ये है कि समाज में अपराध को खत्म करने के डिपार्टमेंट तो है लेकिन अगर अपराध को बढ़ावा देने वाली चीज मौजूद हो तो फिर अपराध बढ़ने लगता है, युवाओं में शराब के बढ़ते उपयोग से नई पीढ़ी का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ दुब्प्रभावित हो गया है, शराब ने सबसे ज्यादा नुक्सान पारिवारिक जीवन और सामाजिक रिश्तों को पहुंचाया है, शराब की दुखदायी प्रव्रत्ति के चलते जहां हजारों परिवार टूटकर बिखर गए हैं, वहीं शराब जनित अपराधों में भी लगातार व्रद्धि हो रही है जो शराब के कारण दुर्घटना का शिकार हो रहा है, इसके लिए व्यवस्था को ही दोषी ठहराया जाएगा जो शराब के खतरों को नजर अंदाज कर ये भूल जाती है कि सामाजिक ढांचे को बचाये रखना भी उसी की ज़िम्मेदारी है |
विश्व में तो शराब की खपत प्रायः स्थिर है लेकिन भारत में 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से व्रद्धि हो रही है, मौजूदा समय देश में शराब के ब्रांड दो सौ से अधिक हैं, ‘रम’ के, पचास, ‘ब्रांडि’ के तीस, ‘जिन’ के दस, ‘बियर’ के पचास ब्रांड उपलब्ध है जबकि देशी शराब 250 किस्म की लोगों को मुहय्या है, देश में शराब की खपत बढ़ने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में अल्कोहल की खपत प्रति व्यक्ति 1.25 लीटर जबकि ऑस्ट्रेलिया में 1.9 और अमेरिका में 4.7 है |
लोकसभा में सन् 1956 में एक प्रस्ताव पारित कर पूरे देश में शराबबंदी के लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प लिया था आज फिर उसी संकल्प को दोहराने की आवश्यकता आन पड़ी है, भारतीय संस्कृत को हमलों से बचाने के लिए भी जरूरी है कि शराबबंदी जैसे कवच से देश की रक्षा की जाए, स्पष्ट कहा जा सकता है कि आज शराबबंदी के लिए जोरदार ढंग से आंदोलन चालाने की आवश्यकता है इसके लिए व्यक्ति और समाज दोनों को ही मोबलाइज होना पड़ेगा, क्योंकि शराबबंदी के लिए साहस व दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है यदि एक बार लोगों की शराब पीने की आदत छूट गई तो उनका नैतिक चरित्र फिर से बन सकता है और अपराधों में भी कमी लायी जा सकती है, कैसे देश को नशे के चंगुल से बचाकर आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ व नशामुक्ति माहोल देकर पूरे विश्व में विख्यात भारतीय संस्कृति के अनुरूप ढाला जा सके, आज देश को फिर उसी गांधी आंदोलन की जरूरत है ताकि नशे की आंधी में मौत को गले लगा रहे समाज को नई राह मिल सके |
आफाक अहमद मंसूरी