नर्मदा स्व-सहायता समूह में हो रहा आय का प्रवाह
औषधि प्रसंस्करण केन्द्र केंवची से सालाना 2700 मानव दिवस का रोजगार
रायपुर, 01 सितम्बर 2023/ केंवची का नर्मदा स्व सहायता समूह औषधीय प्रसंस्करण का काम करता है। यहां से यह समूह बिलासपुर, अम्बिकापुर, दुर्ग, रायपुर, कांकेर और बस्तर की संजीवनी को औषधियों की सप्लाई करता है। यह केन्द्र यहां फरवरी 2016 से कार्यरत है। केंवची मरवाही-वन मंडल के गौरेला परिक्षेत्र का एक गांव है। यहां प्रसंस्करण केन्द्र के सफल संचालन से नर्मदा स्व-सहायता समूह में आय का प्रवाह होने लगा है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के कुशल मार्गदर्शन में राज्य में वन विभाग द्वारा लघु वनोपजों के संग्रहण के साथ-साथ प्रसंस्करण आदि कार्यो से संग्राहकों को अधिक से अधिक लाभ दिलाए जा रहे है। इस संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री व्ही. श्रीनिवास राव ने बताया कि फिलहाल नर्मदा स्व-सहायता समूह की आय की कहें तो इस केन्द्र से वन विभाग द्वारा 2700 मानव दिवस का सालाना रोजगार दिया जा रहा है। इसके अलावा 55-60 लोग जो जड़ी बूटियों के संग्रहण में लगे होते हैं, उन्हें भी बाजार नहीं खोजना पड़ता है। इस तरह औषधीय प्रसंस्करण केन्द्र केंवची से 2700 मानव दिवस के रोजगार का सृजन होता है।
प्रबंध संचालक राज्य लघु वनोपज संघ श्री अनिल राय ने बताया कि यह केन्द्र फरवरी 2016 से यहां संचालित है। यहाँ ब्राहमी, बहेड़ा, मेंहदी, रीण, बेलचूर्ण तुलसी, त्रिफला, अश्वगंधा, अमलकी, मुलेठी, कौंच, गिलोय, हर्रा, भृंगराज, शिकाकाई सफेदे मूसली शीतोपलादि सहित कुल 25 प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं। ढेर सारी औषधियाँ तो हमारे स्थानीय जंगलों से संग्रहीत हो जाती हैं। बाकी हम बाजार से भी खरीदते हैं।
समूह के अध्यक्ष श्री महेन्द्र यादव बताते हैं कि – जंगलों में मिलने वाली औषधियों को केंवची आमादो, पटपटी, रंजकी अटारिया आदि के गांवों के लोग संग्रह करके हमें बेंच देते हैं। इन गाँवों से करीब 55 संग्राहक यहाँ आते हैं। बाकी जो स्थानीय स्तर पर नहीं मिलती हैं, उन्हें बाजार से खरीद कर उनका चूर्ण बनाते हैं। यादव बताते हैं- हमारी बाजार वन विभाग की संजीवनी औषधीय केन्द्र हैं। हम पिछले तीन सालों से अम्बिकापुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, कांकेर और बस्तर को औषधियों की सप्लाई कर रहे हैं। हमे उनके आर्डर पर भी औषधियों का निर्माण करके देते हैं ।
आय व्यय के बारे में भी यादव का कहना है कि यह कुटीर उद्योग है ….. इसमें बहुत बडी आय की गुंजाइश नहीं होती है, फिर भी हम केन्द्र से जो औषधियाँ बेचते हैं, उनका हमें 20 प्रतिशत कमीशन आता है। उसी में हमें समूह के सदस्यों को रोजी भी देनी है। औषधियाँ भी खरीदनी है। पूरी व्यवस्थया हमें उसी 20 प्रतिशत् में करनी होती है। जो बचता है, वह समूह के खाते में जमा रहता है। वैसे अभी तक समिति के खाते में 2,66000 रूपये जमा हैं। वे बताते हैं, वार्षिक टर्न ओवर कम ज्यादा होते रहता है। शुरूआती साल 2016-17 में तो हमे 8 लाख रूपए की ही औषधियाँ बेचे थे। वर्ष 2019-20 में जुलाई तक 7 लाख 83 हजार रूपए की सप्लाई और 5-6 लाख रूपये की जड़ी-बूटियों से तैयार औषधियों के स्टाक सहित लगभग 12 लाख रूपए से अधिक का कारोबार हुआ।