November 22, 2024

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने देश की राजधानी दिल्ली में बांधा समां

0

प्रगति मैदान में छत्तीसगढ़ की संस्कृति की बिखरी छंटा

दिल्ली के प्रगति मैदान में छत्तीसगढ़ राज्य दिवस पर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन

नई दिल्ली, 21 नवंबर 2022- देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से समां बांधा। मौका था भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में छत्तीसगढ़ राज्य दिवस पर सांस्कृतिक संध्या का, जहां एमफी थियेटर में छत्तीसगढ़ की लोक कला व संस्कृति की अनुपम छंटा बिखरी।
कार्यक्रम का उदघाटन छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने किया। इससे पूर्व खाद्य व संस्कृति मंत्री ने छत्तीसगढ़ पवेलियन का अवलोकन किया, जहां अलग-अलग स्टॉलों का भ्रमण कर कलाकारों से जानकारी ली एवं उन्हें प्रोत्साहित किया। वहीं उन्होने कहा कि हमारी संस्कृति मिट जाएगी तो हमारी पहचान ही खत्म हो जाएगी। इसलिए बदलते परिवेश व विषम परिस्थिति में भी अपनी संस्कृति को बचा कर रखना है। इस तरह के आयोजन का अपनी संस्कृति, लोक कला के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है।
प्रगति मैदान के एमफी थियेटर में छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति व कला के बड़ी संख्या में लोग आज साक्षी बने। दर्शकों ने भी भरपूर तालियां बजाकर कलाकारों का प्रोत्साहन किया। छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने छत्तीसगढ़ में विभिन्न उत्सवों, तीज त्योहारों पर किए जाने वाले नृत्यों की प्रस्तुति दी। सांस्कृतिक संध्या में खाद्य व संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत भी खुद को रोक नहीं सके। मंच पर पहुँच कर उन्होंने भी कलाकारों के साथ मांदर पर थाप दिया।
भिलाई से आए लोक रागनी दल के कलाकारों ने सबसे पहले देवी पूजन से नृत्य की शुरुआत की, जिसमें देवी द्वारा राक्षस के नरसंहार को दिखाया गया। महिला कलाकारों द्वारा भोजली नृत्य के बाद सुआ नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ की नृत्य कौशल को प्रस्तुत किया।
सुआ नृत्य मूलतः महिलाओं और किशोरियों का नृत्य है। इस नृत्य में महिलाएं एक टोकरी में सुआ (मिट्टी का बना तोता) को रखकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं और सुआ गीत गाती हैं। हाँथ से या लकड़ी के टुकड़े से ताली बजाई जाती है। इस नृत्य के समापन पर शिव गौरी विवाह का आयोजन किया जाता हैं। जिसके बाद गेंडी नृत्य की प्रस्तुति की गयी। यह पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें पुरुष तीव्र गति से व कुशलता के साथ गेड़ी पर शारीरिक संतुलन को बरकरार रखते हुए नृत्य करते हैं। यह नृत्य शारीरिक कौशल और संतुलन को प्रदर्शित करता है।
बस्तर के जनजातियों द्वारा किये जाने वाले परब नृत्य की प्रस्तुति दी। यह नृत्य बस्तर में निवास करने वाले धुरवा जनजाति के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को सैनिक नृत्य कहा जाता है, क्योंकि नर्तक नृत्य के दौरान वीरता के प्रतीक चिन्ह कुल्हाड़ी व तलवार लिए होते हैं। इस नृत्य का आयोजन मड़ई के अवसर पर किया जाता है।
वहीं, बस्तर के मारिया जनजाति के द्वारा जात्रा पर्व पर किए जाने वाला गौर नृत्य प्रस्तुत किया गया। इस नृत्य में युवक सिर पर गौर के सिंह को कौड़ियों से सजाकर उसका मुकुट बनाकर पहनते हैं। अतः इस नृत्य को गौर नित्य भी कहा जाता है। इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं। महिलाओं द्वारा केवल वाद्य यंत्र को बजाया जाता है जिसे तिर्तुडडी कहते हैं।
इसके साथ ही कलाकारों ने छत्तीसगढ़ का पारम्परिक नृत्य करमा की प्रस्तुति डी। इसे करमा देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी गीत गाते है।
सबसे अंत में उपकार पंथी नृत्य दल के कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से गुरु घासीदास के संदेशों को लोगों तक पहुंचाया। यह नृत्य कई चरणों और पैटर्न का एक संयोजन है। यह नृत्य न केवल इस क्षेत्र के लोक नृत्य के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है, बल्कि इसे छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय का एक प्रमुख रिवाज या समारोह भी माना जाता है। यह नृत्य अक्सर समुदाय द्वारा माघ पूर्णिमा में होने वाले गुरु घासीदास की जयंती के उत्सव के दौरान किया जाता है।
इस अवसर पर संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य, उद्योग विभाग के विशेष सचिव हिमशिखर गुप्ता, संस्कृति परिषद के योगेंद्र त्रिपाठी, खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष राजेंद्र तिवारी, सीएसआईडीसी के प्रबंध संचालक अरुण प्रसाद, लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक श्याम सुंदर बजाज आवासीय आयुक्त श्री अजीत वसंत सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *