साहित्य में भारतीय समाज का चित्रण सही हो – राम माधव
रायपुर। रायपुर लिट्फेस्ट सोसायटी द्वारा आयोजित दो दिवसीय साहित्य परब 2022 के उद्घाटन सत्र में साहित्य व औपनिविशिक मानसिकता विषय पर बोलते हुए प्रखर राष्ट्रीय चिंतक, लेखक राम माधव ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए भारत की भाषा और संस्कृति को कमतर बताया और यही मानसिकता स्वाधीनता के बाद तक बनी रही। यह सच्ची स्वतंत्रता नहीं है।
उन्होंने कहा कि, महात्मा गांधी ने कहा था भारत को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता अभी बाकी है। भारत के इतिहास और साहित्य में आज भी भारतीय मानसिकता को पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाया है। साहित्य में समाज के सही स्वरूप का चित्रण होना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति बल्देवभाई शर्मा ने कहा कि साहित्य केवल कहानी, उपन्यास और कविता तक सीमित नहीं है, पत्रकारिता और इतिहास भी साहित्य का हिस्सा है। इसके लेखन में अभी भी देश के विद्वान औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त हैं। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. पूर्णेंदु सक्सेना ने भी संबोधित किया।
दूसरा साहित्यिक सत्र में साहित्य में समाज व संस्कृति विषय पर साहित्यकार राजीवरंजन प्रसाद, पत्रकार बरुण सखा ने अपने विचार प्रकट किए। इस सत्र में देश के साहित्य में समाज और संस्कृति के विकृत चित्रण किए जाने पर चिंता व्यक्त की गई। अम्बिकापुर से साहित्यकार श्याम कश्यप ‘बेचैन’ ने अपनी साहित्यिक रचना को प्रस्तुत किया।
तीसरे सत्र में छत्तीसगढ़ में साहित्यिक प्रयोगधर्मिता पर चर्चा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य के भक्ति काल के समय से ही प्रयोग प्रारंभ हुआ था। धर्मदास और गोपाल मिश्र से चलते हुए कामता प्रसाद ने व्याकरण के प्रारंभिक पाठ लिखे थे। जगन्नाथ प्रसाद भानु ने हिंदी में छंदशास्त्र का प्रयोग किया। उनकी पुस्तक छंद प्रभाकर का प्रकाशन हुआ। इससे हिंदी लेखन का स्वरूप बदल गया।
संस्कृत आधारित काव्य शास्त्र में व्यापक परिवर्तन किया। काव्य प्रभाकर ने हिंदी काव्य की दिशा बदल दी। उन्होंने हिंदी के छंद को उर्दू का बहर और फारसी के मीटर की तुलना की थी। नवपंचामृत रामायण की रचना काल और गणित के आधार पर की। डॉ. सुशील त्रिवेदी ने साहित्यिक प्रयोग धर्मिता पर प्रकाश डाला। इस सत्र के प्रस्तोता अरविंद मिश्र थे।
आशीष सिंह ठाकुर ने पंडित रामदयाल तिवारी के हिंदी साहित्य में प्रयोग पर कहा कि समर्थ समालोचक लेख में गुणदोष की व्याख्या की गई। तिवारी जी ने यशोधरा और साकेत की समालोचना की। 1933 में लीडर पत्रिका में एक साक्षात्कार में समालोचना के भावी समालोचक आर डी तिवारी में देखते थे उमर खय्याम के कार्यों की समालोचना।
उन्होंने कहा कि तिवारी जी को राष्ट्रीय पहचान मिली गांधी मीमांसा में। गांधी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर तिवारी जी की मीमांसा, गांधी की तुलना तोलतोय, लेनिन, मार्क्स, से की थी। श्री ठाकुर ने कहा कि उमर खय्याम की मूल रुबाइयां कितनी है, यह नहीं पता, एक समय विदेश में उमर खय्याम को महान कवि मान लिया गया।
पंडित रामदयाल तिवारी जी ने उमर खय्याम की फारसी में लिखी रुबाइयों को पढ़कर उन पर लिखा। उन्होंने उमर की रुबाइयों को खारिज करते हुए लिखा कि वे विलासिता आधारित है, सुरा सुंदरी और शराब से परिपूर्ण है। उन्होंने खय्याम की विदेशी प्रशंसा को खारिज किया।
रायगढ़ से पहुंचे साहित्यकार बिहारीलाल साहू ने मुकुटधर पांडे पर अपना विचार करते हुए कहा, वे द्विवेदी युग के समय के नव रत्नों में से थे। उनकी कविताओं में स्वच्छंदता की छाया है। इसकी निखर और विस्तार ही छायावाद है, मुकुटधार पांडे इसके प्रणेता है।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के बारे में चर्चा करते हुए मंच पर चंद्रशेखर शर्मा ने कहा, शिल्प और वास्तु दोनों के साथ प्रयोग करने वाले दुर्लभ प्रतिभा थे बख्शी जी , उन्होंने तीन प्रयोग के काल देखे छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद लेकिन बख्शी ने किसी वाद को नहीं अपनाया। उन्होंने नई तरह का हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा जिसमें काल थे। निबंधों में स्थानीय को स्थापित करने का प्रयास किया, निबंध में पात्र डालना एक प्रयोग था। चार्ल्स लैंप इस मामले में असफल हो गए थे। राष्ट्र और साहित्य निबंध में राष्ट्र को परिभाषित करते हैं।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य के प्रति रुचि रखने वाले, साहित्यकार एवं गणमान्य श्रोता उपस्थित थे। कार्यक्रम के दूसरे दिन भी दो साहित्यिक सत्र होंगे, पहला छत्तीसगढ़ में वाचिक परंपरा और दूसरा सत्र छत्तीसगढ़ी काव्य धारा पर होंगे। छत्तीसगढ़ी कविताओं का पाठ भी किया जाएगा।
आज प्रथम दिन का पहला उद्घाटन सत्र राज्यगीत से आरंभ हुआ, सत्र का संचालन शशांक शर्मा, दूसरे सत्र का संचालन किशोर वैभव और तीसरे सत्र का संचालन महेश शर्मा ने किया।