प्रकृति की धुली हुई हरियाली का स्वागत करना ही है-हरेली”
रायपुर,श्रावण माह की अमावस्या एक ऐसा दिन जो विशेष भी है और महत्वपूर्ण भी। इस दिन से छत्तीसगढ़ महतारी के आंगन में त्यौहारों का आगमन शुरू हो गया है।
अगर आपका बचपन छत्तीसगढ़ की मिट्टी में गुजरा है तो आज के दिन का महत्व आपने जरूर देखा और समझा होगा लेकिन अगर आप आज के इस विशेष दिन के बारे में नहीं जानते हैं तो आज आपका परिचय छत्तीसगढ़ के पहले त्यौहार ‘हरेली तिहार’ से होगा।हरेली एक कृषि त्यौहार है और हरियाली शब्द से जुड़ा है।गौर कीजिए,आज आपने जगह जगह घर के दरवाजे पर नीम के पत्तों की डालियां खोंचते (लगाते) हुए बच्चों के झुंड को जरूर देखा होगा।जरा देखिए, आज कैसे हमारे सियान(बुजुर्ग) भी बच्चों और युवा साथियों के साथ बांस की गेड़ी चढ़कर बचपने का आनंद ले रहे हैं।आज घरों में चढ़ी तेलई से गुलगुला भजिये की खुशबू भी आ रही,तो कहीं गुरहा चीला के लिए तवा भी सिझाया जा रहा है।पतरी में अंगाकर रोटी,बरा-पूरी भी सजाई जा रही है।जरा गांव की ओर तो चलिए….हल,नागर,फावड़ा,कुल्हाड़ी,गेंती और भी कृषि उपकरण आज देव तुल्य विराजमान है और हमारे किसान-मितान अपने सभी कृषि औजारों की पूजा कर रहे हैं,सब मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य की कृषि संस्कृति के पल्लवन और अच्छी पैदावार के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।दईहान में पशुधन की विशेष पूजा कर उन्हें आटे की लोंदियां खिलाई जा रही है।
हमारे लोहार साथी घरों के दरवाजे पर पाती(लोहे की नुकीली कील)ठोंक रहे हैं ताकि अनिष्ट शक्तियों से घर की रक्षा की जा सके।
घरों की दीवार पर गोबर से बनी ये जो आकृति और पाती आपको दिख रही है, माना जाता है कि ये आकृतियां श्रावण अमावस्या को सिद्ध होने वाली अनिष्ट और नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से सबकी रक्षा करती हैं।
स्थानीय परंपराएँ एवं लोकाचार उस स्थान विशेष की भौगोलिक और सामाजिक परिवेश पर आधारित होती है,पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कृति के पालन के साथ साथ इन परम्पराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य होता है।
हरेली त्यौहार मनाए जाने के तरीके को अगर गौर से अवलोकन किया जाए तो कुछ बातें व्यवहारिक रूप से हमें समझ आएंगी।जैसे-
मौसम परिवर्तन(ग्रीष्म से वर्षा) के दौरान घर के प्रवेश द्वार पर कड़वे नीम की पत्तियां एवं गोबर की आकृतियां वातावरण को कीटाणुरहित बनाती है।कड़वे नीम के फायदेमंद गुणों के बारे में तो हर कोई जानता है।
बड़ी फसल लेने के पूर्व आवश्यक उपकरणों, पशुधन आदि की पूजा करना कृषि संस्कृति का द्योतक है।
बांस की बनी गेड़ी चढ़ना जीवन मे संतुलन बनाने की सीख को प्रदर्शित करता है।बच्चे बार बार प्रयास करते हैं, गिरते हैं,सम्हलते हैं,फिर गेड़ी चढ़ते हैं और इस खेल का आनंद लेते हैं।जीवन का भी यही सार है-संतुलित रहते हुए जीवन रूपी गेड़ी का आनंद लेना।
गुड़ स्वास्थ्यवर्धक है,छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजनों में शक्कर की तुलना में गुड़ के प्रयोग का प्रचलन अधिक है।त्यौहारों में घर के भंडार(रसोई) में तेल चढ़ना अनिवार्य होता है ,गेहूं आटे और गुड़ को मिलाकर गुलगुला भजिया बनाया जाता है।गेंहूँ के साथ गुड़ मिलाकर बनाया गया गुरहा चीला हरेली त्यौहार का विशेष व्यंजन है।
हरेली त्यौहार के विशेष महत्व को समझते हुए वर्तमान छ.ग. सरकार द्वारा इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है ,ताकि हम सभी छत्तीसगढ़वासी पूरे हर्षोल्लास के साथ हरेली त्यौहार मना सकें।कृषि संस्कृति एवं गोधन के संरक्षण,संवर्द्धन एवं परिवर्द्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता में लेते हुए छ.ग. सरकार विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है।वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक तीज-त्यौहार की प्रासंगिकता और जागरूकता को बढ़ाने के लिए छ. ग. सरकार द्वारा विभिन्न स्तर पर सार्थक एवं सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।पिछले कुछ वर्षों से हरेली से सम्बंधित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा,ताकि आज की पीढ़ी भी हरेली त्यौहार के महत्व को समझ सके,लोक-परंपराओं को जीवित रख सके। आज आपने गौर किया…अखबारों,सोशल मीडिया के पोस्ट,चौक चौराहों में आयोजनों ,न्यूज़ चैनल प्रसारण आदि के माध्यम से हरेली त्यौहार की जानकारियां एवं विभिन्न गतिविधियां आप तक जरूर पहुंच रही होंगी।अब आप समझ चुके होंगे कि हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है।वर्षा ऋतु के दौरान प्रकृति स्वयं को साफ करती है,चारों ओर साफ सुथरी हरियाली दिखाई देती है,प्रकृति का नया संस्करण प्रस्तुत होता है….हर्षोल्लास और लोक-परम्परा के साथ प्रकृति की इस धुली हुई हरियाली का स्वागत करना ही हरेली है।
आप सभी को छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार-हरेली तिहार की गाड़ा गाड़ा बधई।