ये तो बस शुरुआत है…. अभी दूर तलक जाना है
आवर्ती चराई योजना : मनुष्य और प्रकृति के सह-अस्तित्व का संगम
ग्रामीण कर रहे वन भूमि का संरक्षण, आजीविका मूलक गतिविधियों से कमा रहे आर्थिक लाभ
धनोरा में मुख्यमंत्री ने नव निर्मित आवर्ती चराई गौठान का किया शुभारंभ
गौठान का किया निरीक्षण, महिला समूह के साथ सेल्फी भी ली
रायपुर 28 मई 2022/ विधानसभा केशकाल के धनोरा ग्राम में भेंट-मुलाकात अभियान के दौरान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज नव निर्मित आवर्ती चराई गौठान का शुभारंभ किया और संचालित गतिविधियों से अवगत हुए। यहां लगभग 10 हेक्टेयर में आवर्ती चराई गौठान बनाया गया है। जिसमे लगभग 5 हेक्टेयर में चारागाह विकास किया गया है। 2 हेक्टेयर क्षेत्र में आजीविका मूलक गतिविधियों का संचालन होगा, 1 एकड़ में मल्चिंग विधि से सब्जी उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने फीता काटकर आवर्ती चराई गौठान का शुभारंभ किया और गौठान का निरीक्षण किया। उन्होंने स्व सहायता समूह की महिलाओं के साथ सेल्फी भी ली।
प्राकृतिक संसाधनो और जैव विविधता का संरक्षण करते हुए, उनसे लाभ अर्जन के साधन का सृजन कर ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से शासन द्वारा वन भूमि में आवर्ती चराई गौठान स्थापित किए जा रहे हैं। इससे प्रमुख रूप से दो उद्देश्य की पूर्ति हो रही है, वन भूमि पर उत्पन्न जैव विविधता का संरक्षण और संवर्धन हो रहा है, साथ ही स्थानीय रूप से ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा हैं। पहले जिन महिलाओं के लिए उनकी घर की चौखट ही परिधि थी, आज वे गौठानों और आवर्ती चराई योजना से मनुष्य और वन के बीच संतुलन स्थापित कर रही है और आजीविका मूलक गतिविधियों से लाभ कमा रही है।
धनोरा आवर्ती चराई गौठान के आजीविका मूलक केंद्र में 8 महिला समूहों द्वारा मुर्गी पालन, मशरूम पालन, बटेर पालन, सब्जी उत्पादन, बायोफ्लाक तकनीक से मछली पालन, बकरी पालन, शुकर पालन, गाय पालन, मसाला निर्माण इकाई का संचालन किया जा रहा है। महिलाओं ने बताया कि उन्हें बकरी पालन से लगभग 2 लाख, मशरूम से 70 हजार, गाय पालन डेयरी उत्पादन से लगभग 80 हजार, मुर्गी पालन से 2.5 लाख, मछली पालन से 2 लाख की वार्षिक आय होगी। इसके साथ ही मल्चिंग विधि से सब्जी उत्पादन और मसाला निर्माण इकाई से उन्हें अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। उन्होंने बताया की शासन की सुराजी गांव योजना के तहत बनाए जा रहे आवर्ती चराई से वह मानव और प्रकृति के बीच संतुलन में सहयोग प्रदान कर रही है। पहले जहां घर पर महिलाएं महज झाड़ू, पोछा, बर्तन, परिवार और बच्चों तक ही सीमित थी, आज उनकी सोच का दायरा बढ़ा है। शासन द्वारा उन्हें एक अधोसंरचना और व्यवस्था सौंपी गई है, जिसकी जिम्मेदारी वे पूर्ण निष्ठा से उठाएंगी। वे ना सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत बन रही है, बल्कि प्रकृति के संरक्षण, संवर्धन में भी अपना योगदान दे रही है।