देवगढ़ गौठान में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण कर रहे समूह में सभी महिलाएं विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा से,
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की ये बैगा महिलाएं आजीविका में हैं अव्वल, वर्मी कम्पोस्ट विक्रय से 2.57 लाख तक कमाए, हर महिला को 20 से 30 हज़ार तक का फायदा
कोरिया 11 फरवरी 2022/जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर से विकासखण्ड भरतपुर मुख्यालय की दूरी है लगभग 120 किमी, और भरतपुर मुख्यालय से करीबन 10 किमी दूर है देवगढ़। जिला मुख्यालय से मीलों दूर ग्राम देवगढ़ के गौठान में महिलाएं वर्मी कम्पोस्ट निर्माण कर रही हैं। इसके साथ ही मशरूम उत्पादन का काम जारी है। भविष्य में स्लीपर निर्माण का काम भी शुरू किया जाएगा।
मुख्यालय से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में इस गौठान की खास बात है यहां वर्मी कम्पोस्ट निर्माण करने वाला स्वसहायता समूह। सरस्वती स्वसहायता समूह के नाम से संचालित समूह की सभी महिलाएं विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा से हैं। सरस्वती स्वसहायता समूह में 8 महिलाएं हैं, जो गौठान में वर्मी खाद निर्माण का काम कर रही हैं। शहरों से लेकर दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए गौठान आजीविका और आत्मनिर्भरता के केंद्र साबित हो रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्र और परिवेश की चुनौतियों, घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ अपने हाथ की कमाई तीनों में संतुलन बनाते ये महिलाएं वर्मी कम्पोस्ट खाद के निर्माण कार्य मे लगी हैं। महिलाओं की मेहनत और इच्छाशक्ति की सफलता इसी से आंकी जा सकती है कि इन्होंने महज एक साल में 703.80 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का विक्रय कर चुकी हैं, जिसकी कीमत 7.3 लाख रुपए है। इसमें से अब तक समूह ने 2 लाख 57 हजार 590 रुपए लाभ अर्जित किया है। जिससे प्रत्येक महिला को 20 से 30 हजार रुपए तक की आय हुई है।
समूह की अध्यक्ष चन्द्रवती बैगा ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट खाद के लिए बिहान के द्वारा महिलाओं को पारम्परिक खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद महिलाओं ने वर्मी खाद निर्माण में रूचि दिखाई और उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने बताया कि गौठान में 20 टांको में वर्मी खाद का निर्माण किया जा रहा है, प्रत्येक टांके में लगभग 5 क्विंटल खाद का उत्पादन हो जाता है।
समूह की महिलाओं ने बताया जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरा क्षमता बनी रहती है। वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति और उत्पादन बढ़ोत्तरी के साथ-साथ उत्पादित खाद्यान्न की पौष्टिकता भी अच्छी होती है। यह रासायनिक खाद की अपेक्षा किसानों को सस्ते दाम पर उपलब्ध हो जाती है।