जानकारी के अभाव में विलुप्त होती दुर्लभ ‘दहिमन संजीवनी’ कई असाध्य रोगों में है रामबाण
दहिमन संरक्षण कोरिया वन मंडल का सराहनीय पहल
कोरिया बैकुंठपुर – भारत को आयुर्वेद का गुरु माना जाता है, क्योंकि यहां सदियों से आयुर्वेद को लेकर बड़े-बड़े शोध होते रहे हैं. यहां ऐसी कई दुर्लभ प्रजातियों पेड़ पौधों पाए जाते हैं, जो कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण उपयोगी साबित हुए है. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़, जो काफी दुर्लभ होता है और आसानी से इसकी पहचान नहीं की जा सकती. इस पेड़ के फल, पत्ती, जड़ तना सभी कुछ असाध्य रोगों और शारीरिक समस्या के लिए काम आता है. कई तरह की बीमारियों में ये संजीवनी का भी काम करता है।
जानिए दहिमन के बारे में,,,
दहिमन पेड़ का बॉटेनिकल नाम कॉर्डिया मैकलोडी हुक है, जिसे दहिमन या देहिपलस के नाम से भी जाना जाता है, दहिमन एक औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ है. जो किसी भी प्रकार की संजीवनी बूटी से कम नहीं है. कहा जाता है कि यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी ठीक कर सकती है. दहिमन के बारे में हमारे ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है और लोगों की कुछ धार्मिक आस्था भी इस पेड़ से जुड़ी हुई है.
दुर्लभ है दहिमन,,,
जैसा की जंगलों में औषधिय महत्व के कई वनस्पती पाए जाते हैं, जिनके बारे में क्षेत्र के लोगों को जानकारी नहीं है. ऐसा ही है दहिमन का पेड़ जो जंगलों में पाया जाता है, लेकिन जानकारी के आभाव में विलुप्ति की कगार पर है, यही कारण है कि अब यह ढूंढने से ही मिलता है,जिसका समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो औषधीय महत्व का ये पेड़ पूरी तरह विलुप्त हो जाएगा।
आनंदपुर नर्सरी में 2008 से तैयार किए जा रहे हैं,, दहिमन
यदा कदा जंगलों में ढूंढने से मिलने वाले दहिमन पेड़ के संरक्षण को लेकर कोरिया वन मंडल के द्वारा 2008 से काफी प्रयास किए जा रहे थे। और जिसके परिणाम स्वरूप वर्तमान में इसके पौधे तैयार कर लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं।आयुर्वेद को जानने और समझने वालों ने भी इस पौधे के महत्व के मद्देनजर वन विभाग द्वारा दहिमन संरक्षण कार्य पर कोरिया वन मंडल की काफी सराहना भी की है।हालांकि दहिमन को तैयार करने में विभाग को शुरुआती दिनों में काफी मशक्कत करना पड़ा था।जंगलों में बचे चुनिंदा वृक्षों से एक निश्चित समय में बीज संग्रहित किया जाना दिक्कत भरा था।बचे कुछ ही पेड़ों पर बीज के लिए लगातार निगरानी रखनी पड़ती थी क्युकी इसके बीजों को तोता बहुत तेज़ी से खा जाते हैं।ऐसी चुनौतियों से जूझकर कोरिया वन मंडल का बैकुंठपुर वन परिक्षेत्र अपने आनंदपुर नर्सरी में इसे संरक्षित और विकसित कर पाया।और आज की स्थिति कोरिया वन मंडल से दूर दूर तक जरूरत मंदों को दहिमन उपलब्ध कराया जा रहा है।साथ ही शहर, गांव और जंगलों में इसके वृक्षारोपण को भी बड़ा रूप देने की कवायद जारी है।
आयुर्वेद में दहिमन का महत्व,,,,
आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह ने बताया कि दहिमन के बहुत सारे औषधीय गुण हैं इसके अलग-अलग तरीके से उपयोग में अलग अलग बिमारियों से निजात मिल सकती है. दहिमन, पित्त की बीमारियों को बैलेंस करता हैं, साथ ही हाइपरटेंसिव सीवीए की प्रॉब्लम, सेरिब्रोवस्कुलर अटैक, लकवा वगैरह का पेशेंट भी दहिमन का प्रयोग कर आराम पा सकता है.क्या है दहिमन का उपयोग
ब्रेन में क्लॉट में दहिमन का पत्तियों का लेप लगाना और माला पहनने से क्लॉट डिसॉल्व होने लगता है.कई मामलों में इसका उपयोग जहर का प्रभाव कम करने के लिए होता है.कम नीद और ज्यादा नीद के मरीजो की मानसिक स्थिती को संतुलित करता है.अगर कोई मानसिक रोगी शराब नहीं छोड़ पा रहा है तो उसके लिए भी यह बहुत उपयोगी है.सांप के काटने पर भी इसका उपयोग जहर के कम करने के लिए किया जाता.