लैंटाना उन्मूलन की राशि में हुआ बंदरबांट मनेंद्रगढ़ वन मंडल लाखो रुपए खर्च फूँक कर भी लैंटाना में हो रही व्रद्धि को रोक पाने में असफल
मनेंद्रगढ़ वन परिक्षेत्र लैंटाना के बीहड़ में हुआ तब्दील,,,
पुरानी कहावत है जब नियत साफ हो तो उसका फल जरूर अच्छा निकलता है और जब नियत ही गोलमाल करने की हो तो फिर उसका कोई मालिक नहीं होता मनेंद्रगढ़ वन मंडल क्षेत्र के अंतर्गत लैंटाना उन्मूलन के लिए छत्तीसगढ़ शासन भरपूर राशि मुहैया कराता रहा है यह राशि कहां जाती है यह सबको पता है मनेन्द्रगढ़ मंडल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले डी एफ ओ , रेंजर बीट गार्ड की मिलीभगत का ही नतीजा है कि अब लैंटाना की जड़े इतनी मजबूत हो चली है कि वृक्षारोपण में हुई धांधली साफ नजर आती है आपको बताते चलें कि लैंटाना परजीवी पौधा होता है जो अपने आसपास के छोटे पौधों को निकल जाता है, लगभग हर साल ही वृक्षारोपण किया जाता है वृक्षारोपण के उपरांत सही देखरेख ना हो पाने के कारण वृक्ष या यूं कहें पौधे असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं उसका सबसे बड़ा कारण लैंटाना होता है। ऐसा नहीं है की यहां के अधिकारियों को ईसकी की मालूमात नहीं है जानबूझकर या लापरवाही की पराकाष्ठा कहे यहां सब कुछ भगवान भरोसे अब देखना यह है कि पौधारोपण के नाम पर मनेंद्रगढ़ वन मंडल कब तक यूं ही सरकार की आंखों में धूल झोंकत रहेगा
मनेंद्रगढ़ कोरिया – विदेश से भारत पहुंची लैंटाना घास का बढ़ता दायरा कम करने को लेकर राज्य सरकार द्वारा राज्य के सभी वन मंडलों को वर्ष वार बड़ी राशि मुहैया कराई जाती है।जिससे लैंटाना उन्मूलन का कार्य कराया जा सके।आपको बता दें कि इसका उद्देश्य है कि बड़े पैमाने पर घास की उन प्रजातियों को बढ़ावा देना है जो जैव विविधता के साथ वन्य जीवों के लिए भी उपयोगी है।साथ ही लैंटाना का भी खात्मा हो।और वनों को विकसित किया जा सके।
दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देती है लैंटाना,,,
लैंटाना ऐसी झाड़ी प्रजाति है, जो अपने इर्द-गिर्द दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देती। साथ ही वर्षभर खिलने के गुण के कारण वनों में इसका निरंतर फैलाव बना रहता है।
छोटे बड़े प्राकृतिक नए पौधों वाले वन और घास के मैदानों पर लैंटाना का कब्जा होने के कारण शाकाहारी वन्यजीवों के भोजन पर भी खासा असर पड़ता है।
मनेंद्रगढ़ वन मंडल का कागजों में सिमटा लैंटाना उन्मूलन,,,,
वन मंडल के कई परिक्षेत्रों में लैंटाना उन्मूलन कार्य हेतु दो वर्षों की आबंटित राशियों का उपयोग लैंटाना ग्रस्त वनों में ना कराकर बल्कि उसे कागजों में खपा दिया गया है।मनेंद्रगढ़ वन परिक्षेत्र में विगत दो वर्षों में लैंटाना उन्मूलन के लिए काफी बड़ी राशि दी गई थी परन्तु उससे नाम मात्र का ही कार्य कराकर बड़े हिस्से की राशि का सीधी तौर पर बंदर बांट कर लिया गया। जिसका वर्तमान परिदृश्य ये है कि मनेंद्रगढ़ के वन परिक्षेत्र अन्तर्गत जंगलों में लैंटाना का ही जंगल चारों ओर विकसित नजर आएगा।किसी भी प्रजाति का प्लांटेशन हो या प्राकृतिक वन सभी शत प्रतिशत लैंटाना ग्रस्त हो चुके हैं।बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी लैंटाना के कंटीले लतेदार झाड़ी में तब्दील हो चुका है मनेंद्रगढ़ वन परिक्षेत्र का जंगल।