वनों की अवैध कटाई और प्लांटेशन के तैयार पौधों की देखरेख में लापरवाही बरत रहा वन विभाग
केल्हारी रेंजर अपने दायित्वों के प्रति कितने सजग ????
मनेंद्रगढ़ कोरिया – जंगल की जमीन जिस तरह वोट बैंक की राजनीति और कुर्सी का सुख भोगने की चाह में बेरोक टोक बांटी जा रही है।भविष्य में जंगल बचेगा उम्मीद न जैसा है। वहीं दूसरी ओर नेताओं की तर्ज पर वन अमला भी वैसा ही नक्से कदम अपना चुका है।जंगलों में तेजी से बढ़ता अतिक्रमण और उसी की आड़ में बड़े वृक्षों की कटाई जंगल के अस्तित्व को बड़े खतरे में ओर मोड़ चुका है। हाल ही में हमने कोरिया जिले अंतर्गत मनेंद्रगढ़ वन मंडल के केल्हारी वन परिक्षेत्र का दौरा किया। 15 से 20 किलोमीटर के बीहड़ वनों के भ्रमण में वनों की सुरक्षा को लेकर बड़ी लापरवाही देखने को मिली।
वनों के रक्षक ही दिखे,,भक्षक
जामवंत योजना जंगली भालुओं को सुरक्षित और संरक्षित करने की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है।जिसके मद्देनजर महुआ,तेंदू,जामुन,इत्यादि जैसे फलदार वृक्षों का वृक्षारोपण करना था। परंतु यहां बिल्कुल उलट ही दृश्य देखने को मिला।
वन विभाग के अधिकारियों की जानकारी में महुआ जैसे फलदार और पूरी तरह तैयार युवा वृक्षों के इर्द गिर्द जड़ों की मिट्टी खोदकर मशीनों से निकाली गई।केल्हारी के डिहुली से बड़गांव वन मार्ग पर मिट्टी डालने के लिए जिस तरह पेड़ों की जड़ को खोदा गया है निश्चिंत ही ये बड़ी गलती और मनमानी है।बहरहाल वन मंडल के डी एफ ओ द्वारा मौके की जांच की जाती है तो उन्हें अपने अधीनस्थ अधिकारियों की कार्यशैली और सजगता दोनों के दर्शन जरूर होंगे साथ ही लिखे पहलुओं की सच्चाई भी सामने होंगी।
2010 के बाद केल्हारी वन परिक्षेत्र में अवैध अतिक्रमण पर नहीं हुई बड़ी कार्यवाही ,
आपको अवगत करा दें कि वर्ष 2010-11 के दौरान मनेंद्रगढ़ की तत्कालीन एस डी एम रेणुका श्री वास्तव के द्वारा केल्हारी वन परिक्षेत्र के वनों में वर्षों से जड़ जमाए अवैध अतिक्रमण पर जोरदार कार्यवाही करते हुए कई बड़े रकबों को मुक्त कराया गया था।और उनमें से काफी रकबों में तत्काल वृक्षारोपण भी करा दिया गया था।जिसे हम आप केल्हारी मुख्यालय से एक किलोमीटर पहले मुख्य मार्ग के दोनों ओर सागौन के सुंदर छोटे वनों के रूप में देखते हैं।वर्तमान में केल्हारी वन परिक्षेत्र के
केंवटी, पहाड़ हसवाही, डाड़ हसवाही,कैलाशपुर सहित कई वन क्षेत्रों में 2-3 वर्षों के दौरान जिस तरह अतिक्रमण बढ़ा है।और हुए अतिक्रमण पर वन विभाग की अनदेखी देखने को मिली है।वो जिम्मेदार नेतृत्व का परिचय नहीं है।
बांस प्लांटेशन देखरेख के अभाव में हो रहा बर्बाद,,,
केल्हारी के कुछ किलोमीटर पहले मुख्य मार्ग और केवटी के वनों में काफी पहले बांस की रोपणी की गई थी।और जो रोपणी अपने लक्ष्य को लेकर लगभग सफल भी होती दिख रही थी लेकिन विगत दो तीन वर्षों के दरमियान जिस तरह बांस के तैयार पौधों की केज्युलटी हो रही है सहज भाषा में कहें कि वन मंडल के जिम्मेदारों की लापरवाही,घटिया किस्म की फिंसिंग और देख रेख का अभाव बड़ा कारण साबित हो रहा है।
बिलुप्त होते हर्रा बहेरा के बड़े औषधीय वृक्षों की कटाई सहज तौर पर,,,
आपको बता दें कि केल्हारी वन परिक्षेत्र अंतर्गत शिवपुर,और बड़गांव मार्ग के दुर्गम वन भ्रमण के दौरान जंगलों में जिस तरह हर्रा बहेरा जैसे औषधीय वृक्षों की कटाई का मंजर देखने को मिला वो आश्चर्य चकित कर देने वाला रहा।कई कटे वृक्ष हाल ही के कटे दिखे।लेकिन ना तो उन वृक्षों पर विभाग द्वारा हैमरिंग की गई थी और ना ही उसे विभाग अपने कब्जे में ले सका था।अब सवाल ये उठता है कि विभाग इन वृक्षों के जीवित रहते रक्षा तो कर नहीं सकता तो क्या कटने के बाद भी लावारिस छोड़ कर अवैध उपयोग के लिए छोड़ देता है।
नीलगिरी के प्लांटेशन चढ़ रहे लापरवाही के भेंट,,,
केल्हारी वन परिक्षेत्र के रेंजर जिस तरह पूर्व रोपित प्लांटेशन की देखरेख को लेकर लापरवाह नजर आ रहे हैं ये काफी चिंता का सबब है।अन्य प्रकार के पौधों सहित नीलगिरी के तैयार प्लांटेशन जहां पूरी तरह युवावस्था में आ चुके हैं।बड़े तादात में उनकी कटाई और गैर जिम्मेदार लोगों के द्वारा सहज ही उन्हें तोड़ दिया जाना शायद केल्हारी रेंज के जिम्मेदारों के लिए आम बात होगी लेकिन क्या इस लापरवाही पर संतोष जनक जवाब दे पाएगा विभाग ?
ठूठ में परिवर्तित होता केल्हारी वन परिक्षेत्र का जंगल,,,
मनेंद्रगढ़ वन मंडल का केल्हारी वन परिक्षेत्र बड़े वन रकबों के जंगलों की श्रेणी में शुमार होता है।वृहद और बीहड़ वनों की बड़ी बड़ी पहाड़ियों से घिरे वन और विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणियों की जीवन शैली और विचरण धरा के लिए जाना जाता है।और अब जिसकी वर्तमान सुरक्षा पर सेंध लगती दिख रही है साथ ही हरे भरे जंगल ठूठ में परिवर्तित होते जा रहे हैं।उसको देखकर एक ही सवाल बार बार सामने आता है कि क्या इसकी सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी सही हाथों में है? या फिर सरकार ही जंगल में जंगलराज स्थापित करने पर आमादा हो चुकी है।जो नियुक्त जिम्मेदार बार बार गैरजिम्मेदाराना गतिविधियों के बाद भी बक्से जाते जा रहे हैं।