November 23, 2024

हरियाली के साथ स्वस्थ्य तन व मन का प्रतीक है हरेली पर्व

0

रायपुर, 7 अगस्त 2021। पुरे छत्तीसगढ अंचल में हरेली श्रावण मास में मनाया जाने वाला त्यौहार है। ग्रामीण  बड़ी धूमधाम से इस दिन हरेली को मनाते हैं। किसान इस दिन अपने मवेशियों और कृषि यंत्रो की पुजा करते हैं और ग्रामीण जन गोठान जाते हैं। सुबह के समय अपने साथ थाली में चावल, मिर्च और नमक चरवाहे के लिए ले जाते हैं। उसी के साथ गुथा हुआ आटा और खम्हार पान ले जाते हैं। उस गुथे हुए आटे की गोली बनाकर खम्हार पान(पान=पत्र) के बीच रख हल्का बांध देते हैं फिर अपने गाय, बैल, भैंस को खिलाते हैं। घर वापस लौटते समय चरवाहों द्वारा सुदुर जंगल से लायी हुई वनौषधि को अच्छे से साफ कर एक मिट्टी के घड़े लेकर पानी में उबालकर रातभर औषधि का काढा तैयार करते हैं। गांव में ही एक पारंपरिक वैद्य यानी बैगा होता है जो हरेली के दिन गांव के सभी घरों में जाकर नीम और भल्लातक की टहनियाँ पत्तों के साथ घर के प्रमुख द्वार और आँगन में लगाते हैं।

पंच कर्म चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. रंजीप कुमार दास का कहना है:“हमारे पुर्वज काफी वैज्ञानिक सोच के थे जो हर रोग की एक औषधि का ज्ञान रखते रहें। जो वनौषधि उन्हें खाने को दी जाती थी वह आज पारंपरिक रुप से आस्था के साथ साथ बीमारियों के प्रकोप से बचाने शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान के तहत एक ही दिन में पूरे जनसमुदाय को एक साथ एक ही समय में दिए जाने वाला औषधि अभियान की तरह होता है। इसे स्वास्थ्य कार्यक्रम मान सकते हैं जिसमें एक ही दिन में हजारों लोगों को औषधि खिलायी जाती थी। हरेली एक त्यौहार ही नहीं ये हमारे पुर्वजों के द्वारा शुरु की गयी पहली स्वास्थ्य अभियान या कार्यक्रम है। इस तरह पहले लोग अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते थे जो आज भी मान्य है।‘’

आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. गुलशन कुमार सिन्हा बताते हैं ग्रामीणों में मान्यता है– सावन के महीने में मौसमी बीमारियों के प्रकोप का संक्रमण प्रबल होता है। रोगों से बचने के लिए चरवाहे जंगलों से वनौषधि लाते है और यह कार्य सिर्फ चरवाहे करते हैं जो उपवास रख कर साल में एक वनौषधि को पूरी रात जग कर तैयार करते हैं। वन औषधि से बने काढ़े को फिर सुबह गोठान में प्रत्येक ग्रामीणों को बाँटा जाता है।

डॉ. गुलशन कुमार सिन्हा ने बताया, आयुर्वेद में इस संबंध में और जानकरी जुटाई तो ज्ञात हुआ वर्षा ऋतु में श्रावण मास में सर्वाधिक वर्षा होती है। इससे नदी, नाले, तालाब व खेतों में बड़ी मात्रा में बाढ़ भी आती है। इसके कारण जीवाणु, विषाणु और बैक्टिरिया सक्रिय हो जाते हैं। कहीं-कहीं गंदगी बाढ़ के कारण या पानी का जमावड़ा हो जाता है जिससे महामारी फैलने का खतरा बना रहता है। वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य जागरुकता कार्यक्रम चलाती है।

लेकिन पहले आज की तरह आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ नहीं थी तो लोग किसी महामारी को दैविय प्रकोप मानते थे। सैकड़ो हजारों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती थी। इसी से बचने के लिए ग्रामीण वनौषधि का सेवन करते थे जिसे आज परम्परा के रुप में मनाते आ रहे हैं। वनौषधि जिसका हरेली के दिन सेवन करते हैं उसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति में शतावर के नाम से जाना जाता है जिसका लैटिन नाम एस्पेरेगस रेसिमोसस होता है।

शतावरी एक बहुमुल्य औषधि इसके फायदे

यह शारिरीक क्षीणता  दूर  करता है

अनिद्रा  दूर  करता है

रात की रतौंधी मे उपयोगी

पेशाब संबंधी बिमारी में

महिलाओं की स्तन संबंधी समस्या या दूध  न आना

पुरुषों में बलवर्धक

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है

नीम का औषधिय महत्व –

नीम :- Azadirachtaindica

– यह मधुमेह में अत्यंत लाभकारी है

– नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और व्रण के निवारण में सहायक है

– नीम का दातुन करने से दांत और मसुड़े स्वस्थ रहते हैं

– नीम की पत्तियाँ चबाने से रक्तशोधन होता है और त्वचा कांतिवान होती है

– नीम की पत्ती को पानी में उबालकर नहाने से चर्म रोग दुर करने में सहायक होती है। खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है उसके विषाणु को फैलने नही देते।

– नीम के तैल का नस्य करने से शिरोरोग में लाभ तथा बालों की समस्या (बाल झड़ना) से भी निजात मिलती है।

भल्लातक का औषधिय महत्व

छत्तीसगढ़ में भेलवा कहा जाने वाला औषधिय युक्त वनोपज को Semecarpusanacardium (लैटिन नाम) जाता है। इसका काजु से निकट संबंध है।ग्रामीण इसे मुख्य रुप से हाथ पैर की माँसपेशियों के दर्द से निजात पाने के लिए प्रयोग करते हैं।इसके फल को गर्म कर इसमें सुई(सुजा) चुभोकरइसके तैल को सुई से हाथ पैर के तलवों और ऐड़ी पर लगाया जाता है। इसका उपयोग अत्यंत सावधानी से करना पड़ता है क्योंकि तलवों के अलावा अन्यत्र शरीर पर लग जाये तो त्वचा पर फफोले आ सकते हैं । इसकी तासिर गर्म होती है। आयुर्वेद के अनुसार भल्लातक एक मधुर और तिक्त रस से युक्त कड़वे स्वाद वाला फल होता है।

– कृमिरोग नाशक होता है

– यौन रोगों में लाभकारी होता है

– भूख बढ़ाने में सहायक होता है

– त्वचा संबंधी विकार को दुर करने में सहायक होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *