सरकार मिड्-डे मील में नौ-निहालो को जहर परोस रही है – कांग्रेस
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रायपुर, गंरियाबंद जिले के जामगांव स्कूल में जहां आज मिड्-डे मील (मध्याह्न भोजन) खाने के बाद तकरीबन 25 बच्चों की तबीयत बिगड़ गई स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों को आनन-फानन में देवभोग अस्पताल में भर्ती कराया गया, बच्चों को लगातार उल्टी, दस्त हो रही थी कुछ बच्चों की हालत ज्यादा ही खराब है, ऐसी घटनायें प्रदेश में अनेको बार घट चुकी है और सरकार
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी ने कहा कि एक ओर शिक्षा मंत्री केदार कश्यप, रमन सरकार के 14 वर्षो में अपने विभाग का गुणगान कर रही है, वहीं दूसरी ओर मिड्-डे मील खा कर प्रदेश के बच्चे शिक्षा के मंदिर से अस्पताल पहुंच रहे है। दुर्भाग्य का विषय है कि पूर्व में मिड्-डे मील (मध्याह्न भोजन) वितरण का संचालन स्कूल के द्वारा किया जाता था और जिसकी जिम्मेदारी प्रधान पाठक की होती थी, जिससे बच्चों को हरी सब्जिया शुद्ध, ताजा भोजन परोसा जाता था। वर्तमान परिस्थितियों में वर्ष 2006 के बाद से एनजीओं संचालक द्वारा प्राईमरी स्कूलों में प्रति बच्चे तथा 4 रूपय 75 पैसे एवं मीडिल स्कूल के बच्चो को 100 ग्राम चावल शासन की ओर से एवं 5 रूपय 25 पैसे के दर से भुगतान किया जाता है, जबकि वर्ष 2005 तक प्रधान पाठको के संचालन के यह राशि 2 रूपय 65 पैसे (प्राईमरी छात्रा) एवं 3 रूपय 15 पैसे मीडिल स्कूल के छात्रो को दिया जाता था। सरकार ने कमीशनखोरी के चलते फैसले को बदल कर मिड्-डे मील मध्याह्न भोजन वितरण का कार्य एनजीओं के हाथों में सौप दिया, जिससे एनजीओं संचालक अधिक मुनाफा कमाने के चलते गुणवक्ता विहीन वस्तुओं का उपोयग कर अत्यधिक मात्रा में पकाने का काम करते है और सही समय पर वितरण न होने जैसी समस्याओं के चलते हमारे नवजात विशैला भोजन खाने को मजबूर है, तथा फूड-प्वाइजनिंग के शिकार है।
जबकि निर्देशो के अनुसार मध्याह्न भोजन योजना के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जो कि निम्न है-
ऽ खाना हमेंशा किचन शेड में सुरक्षित स्थान पर बनाया जाना चाहिये।
ऽ किचन शेड की चूने से नियमित पोताई एवं साफ-सफाई की जानी चाहिये। इससे किसी प्रकार के कीड़ें-मकोड़े, छिपकली आदि किचन में प्रवेश करने से स्पष्ट दिखाई देतें है।
ऽ खाना हमेशा ढक कर ही पकाया जाये तथा कभी भी खुला ना रखा जाये। यदि खुला रखने की आवश्कता हो तो रसोईयां की देखरेख में ही उसे खुला रखा जाये।
ऽ किचन में रोशन दान, धुआं निकलने के लिये चिमनी आदि को बारिक छेद वाले जाली से ढका जाना चाहिये जिससे कीट पतंगें किचन में प्रवेश न करें सामान्य तौर पर किट पतंगों के साथ ही छिपकली किचन में प्रवेश करती है। जाली लगाने पर इसकी नियमित सफाई भी किया जाना आवश्यक है जिससे रोशनदान एवं चिमनी लगाने के उद्देश्य की पूर्ति भी हो सके।
ऽ रसोईयों के द्वारा खाद्य पदार्थों को पकाने के पूर्व आवश्यक साफ-सफाई अनिवार्य रुप से किया जाना चाहिये।
ऽ किसी भी परिस्थिति में बासी भोजन बच्चों को न दिया जाये।
ऽ मध्याह्न भोजन बनाने के दौरान संचालनकर्ता समूह के सदस्यों एवं शाला के प्रधान पाठक या अन्य शिक्षक के द्वारा कम से कम एक बार किचन का आकस्मिक निरीक्षण अवश्य किया जाना चाहिये।
ऽ बाजार से सब्जी खरीदते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि सब्जियां ताजी हो। सड़ी गली सब्जियां उपयोग मे न लाये।
ऽ बर्तन साफ सुथर होने के बाद भी, खाने बनाने के ठीक पहले, बर्तन को एक बार अवश्य धोना चाहिये।
ऽ मध्याह्न भोजन के पूर्व बच्चों के हाथ साबुन से धुलाये जाने चाहिये।
ऽ बच्चों के खाने के बर्तन भी साफ होने चाहिये। हाथ धोते समय ही खाने के लिये थाली/प्लेट को धोने हेतु बच्चों से कहा जाये।
ऽ मध्याह्न भोजन के पश्चात किचन सहित बच्चों के खाना खाने के स्थान की रसोंइयों के द्वारा प्रतिदिन सफाई किया जाना है।
ऽ बच्चों के हाथ धोने तथा पेयजल के स्थान पर नियमित सफाई की जानी चाहिये। किसी प्रकार के पानी के ठहराव की स्थिति में पानी के निकास की व्यवस्था की जानी चाहिये।
ऽ गुणवत्तायुक्त तेल,मसाले एवं दाल का उपयोग किया जाना चाहिये। इस हेतु समूह या संचालनकर्ता द्वारा उसी ब्रांड के सामग्री या उसी दूकान से सामग्री क्रय किया जाना चाहिये जहां से वे अपने घर के उपयोग के लिये करते है। किसी नये ब्रांड के सामग्री का प्रायोगिक रुप से उपयोग मध्याह्न भोजन में न किया जाये।
ऽ भारत शासन के गाइडलाइन के अनुसार बच्चों के लिये तैयार मध्याह्न भोजन को परोसने के पूर्व शाला के किसी शिक्षक/पालक/जन प्रतिनिधि के द्वारा खाकर परीक्षण किया जाना है। इसका अनिवार्यतः पालन किया जाना चाहिये।
ऽ खाद्य पदार्थोें के भण्डारन के स्थान पर भी नियमित साफ-सफाई किया जाना चाहिये। खाद्य पदार्थों का भण्डारन हमेंशा सुखे स्थान पर किया जाना चाहिये। नमी वाले स्थान पर खाद्य पदार्थों के प्रदूषित होने की आशंका अधिक होती है।
ऽ किसी प्रकार की दवाई, मिट्टी तेल, फिनाइल, साबुन, सोडा आदि को खाद्य पदार्थों के साथ न रखा जाये। इसे शाला के पृथक कमरे में रखा जाना चाहिये।
ऽ किचन में पर्याप्त रोशनी होनी चाहिये। जिससे भोजन पकाते समय उपयोग में आने वाले खाद्य पदार्थों को रसोंइयों के द्वारा स्पष्ट देखकर उसकी गुणवत्ता जांची जा सके।
तिवारी ने कहा कि यह सरकार पौष्टिक आहार जिससे मानसिक स्वास्थ, शाररिक स्वास्थ, समाजिक स्वास्थ को आधार मानकर पेटभर खाना देने के नाम से बच्चों के स्वास्थ एवं भविष्य से खिलवाड़ कर रही है।