फाईलेरिया के मरीजों को दिया जाएगा घरलू रोग प्रबंधन का प्रशिक्षण
बालोद, 25 फरवरी 2021। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जिले में ब्लॉक स्तर पर फाईलेरिया नियंत्रण के प्रभावितों को बीमारी से विकृति के बचाव एवं रखरखाव के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। जिले के पुराने फाईलेरिया के मरीजों के साथ–साथ स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व मितानिन को घरलू रोग प्रबंधन की जानकारी दी जाएगी। फाईलेरिया से ग्रसित मरीजों के पैर, हाथ, महिलाओं के स्तन सहित अन्य प्रभावित अंगों की साफ-सफाई का डेमो प्रशिक्षण के दौरान दिखाया जाएगा।
जिला मलेरिया अधिकारी डॉ जी आर रावटेने बताया, सीएमएचओ डॉ जेपी मेश्राम के मार्गदर्शन में मरीजों को घरलू रोग प्रबंधन की सामग्री किट जैसे- साबुन, टावेल, लोशन, टब, मग्गा आदि को वितरित किया जाएगा। ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम मार्च के पहले सप्ताह से प्रारम्भ होगा जिसमे जिले के बी.ई.टी.ओ रमेश कुमार सोनबोइर, फिजिओथेरपिस्ट अजय बाम्बेश्वर, लैब टेक्निशियन बीके सोनबोइर व नागेश्वरी साहू आदि को प्रशिक्षण शिविर के लिए मास्टर ट्रेनर बनाया गया है। प्रशिक्षण शिविर में मरीजों को हाथी पांव से बचाव की जानकारी देकर मरीजों को सूजन व दर्द से राहत दिलाई जा सके।
डॉ रावटे ने बताया फाइलेरिया सर्वेक्षण-वर्ष 2020 में जिले के डोंडी में 59, बालोद में 75, डोंडीलोहारा में 137, गुंडरदेही में 30 व गुरूर में 26 सहित 327 मरीजों की पहचान की गई है। पुराने 113 मरीजों को प्रशिक्षण दिया जाएगा जिनमें हाथ में 6, पैर में 85, स्तन में 14 व 8 अन्य अंगों में प्रभावित हैं| इन मरीजों को प्रशिक्षण में जानकारी देने के लिए बुलाया जाएगा। फाइलेरिया के मरीजों में 214 पुरुष हाईड्रोसिल से ग्रसित हैं। सभी का स्क्रीनिंग के बाद ऑपरेशन के योग्य मरीजों के हाईड्रोसिलका सर्जन चिकित्सकों द्वारा सर्जरी की जाएगी। हाईड्रोसिल वाले मामले में ऑपरेशन कर जिलों को हाईड्रोसिल मुक्त जिला घोषित करने लक्ष्य रखा गया है । इसके अलावा पांच साल के उम्र के बच्चों का रात्रिकालीन सर्वे कर सेंपल लिया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग ने फाईलेरिया संवेदनशील एवं असंवेदनशील जिलों में मरीजों का लाइन लिस्टिंग किया है। असंवेदनशील जिलों में जहां फाईलेरिया के मरीज पाए गए हैं, वहां माइक्रो फाईलेरिया दर जानने रात में सर्वे किया जा रहा है।
डॉ. रावटे ने बताया फाईलेरिया या `हाथीपांव’ बिमारी का संक्रमण आमतौर पर बचपन में होता है, और यह क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है, लेकिन लक्षण सात आठ वर्ष बाद दिखाई देते है। अगर समय रहते फाईलेरिया का ईलाज नही किया गया तो यह लाईलाज बिमारी में बदल जाता है। इसलिए डी.ई.सी/एल्बेन्डाजोल की दवाई का सेवन वर्ष में एक बार जरूर करें। यह दवा सरकार द्वारा निशुल्क दी जाती है और दो बार दवा लेने पर यह रोग काभी नहीं होता है।
सातवे स्टेज के मरीज को विकलांग प्रमाण पत्र समाज एवं कल्याण विभाग से जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रदाय किया जाना सुनिश्चित किया गया है। राज्य सरकार ने एनटीडी (नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज) उन्मूलन के लिए 2025 तक फाइलेरिया रोग समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। राज्य में फाईलेरिया के 11044 मरीजों का लाइन लिस्टिंग कर चिन्हित किया गया है। इसमें 5321 लिम्फेडिमा एवं 5723 हाईड्रोसिल मरीज हैं।
फाइलेरिया के कारण
फाइलेरिया रोग मच्छरों द्वारा फैलता है, खासकर परजीवी क्यूलैक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर गंदगी वालों जगहों में सबसे अधिक पाया जाता है। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के विषाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं। लेकिन ज्यादातर संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इसलिए इसकी रोकथाम बहुत ही आवश्यक है।
फाइलेरिया के लक्षण
आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
हाथी-पांव से पीडितों के लिए उपाय –
1. अपने पैर को साधारण साबुन व साफ पानी से रोज धोइये।
2. एक साफ व मुलायम कपडे से अपने पैर को पोंछिए।
3. जितना हो सके अपने पैर को आरामदायक स्थिति मे उठाये रखे।
4. जितना हो सके, व्यायाम करें, कहीं भी, कभी भी।
5. सोते समय पैर को तकिये के उपर, उठा कर रखें।
6. प्रति 06 माह में डी.ई.सी एवं एल्बेन्डाजोल की दवा उम्रवार चिकित्सक के परामर्श के अनुसार लें।
7. सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें।