महात्मा गांधी नरेगा से संवरें तालाब और जिन्दगी पंचायत और आदिवासी किसान को मिला नया आर्थिक स्त्रोत
कोरिया! प्राचीन काल से अब तक जहां-जहां भी आबादी बसती गई, वहां परंपरागत ढंग से जलस्रोत के साधनों के रूप में तालाबों का निर्माण किया जाता रहा है। पुराने जमाने में भी यह पेयजल, सिंचाई और निस्तारी का प्रमुख साधन हुआ करते थे। आधुनिक दौर में जलस्रोतों के उन्नत रूप में बोरिंग और नलकूप जैसी सुविधाओं के चलते वर्तमान समय में, ये पारंपरिक महत्वपूर्ण जल स्त्रोत गंदगी का केन्द्र बन गए हैं। इससे इतर आज भी गाँवों में तालाबों की सुरक्षा के प्रति ग्रामीण और पंचायतें सजग हैं। इसी सजगता का ‘परिणाम’ योजनाओं के सहयोग से सफलता की कहानी में भी तब्दील हो जाता है। ऐसा ही एक कार्य कोरिया जिले के सुदूर विकासखण्ड भरतपुर की ग्राम पंचायत कंजिया में देखने को मिलता है। यहां पुरातन समय का एक बड़ा तालाब है, जिसका स्रोत धीरे-धीरे बंद होता जा रहा था। तब इसे देखते हुए ग्रामीणों की मांग पर पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा से इसका गहरीकरण कराया। इससे एक ओर जहाँ ग्रामीणों को रोजगार मिला, वहीं दूसरी ओर गहरीकरण के बाद से इस तालाब में मछली पालन भी प्रारंभ हो गया। इसके अलावा ग्राम पंचायत को इससे एक निश्चित आय भी हो रही है और गाँव के ही एक आदिवासी परिवार को रोजगार का स्थायी साधन मिल गया है, जिससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग दो लाख रूपए तक की आय होने लगी है।
कोरिया जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर से 168 किलोमीटर दूर कंजिया गाँव है, जो कि अनुसूचित जनजाति बाहुल्य है। यहां काफी पुराना एक तालाब है, जिसे ‘बड़ा तालाब’ के नाम से जाना जाता है। गांव के ही मोहल्लों बीचपारा और डोंगरीपारा के बीच मुख्यमार्ग के किनारे यह तालाब स्थानीय तौर पर निस्तारी का प्रमुख साधन है। इसके अलावा यह तालाब उनके पशुओं के पेयजल का भी मुख्य स्रोत है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस तालाब में लंबे समय से गहरीकरण नहीं किए जाने के कारण यहाँ पानी कम होने लगा था, जिससे गर्मियों में यह सूखने की कगार पर पहुँच जाता था। लगभग चार बरस पहले जिले में लगातार दो साल औसत से काफी कम बारिश हुई थी, इस कारण यह तालाब पूरी तरह से सूख गया था।
पंचायत को मिला नया आर्थिक स्रोत
ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती विपुनलता सिंह बताती हैं कि साल 2015 में जब गर्मियों में पानी की किल्लत हुई थी, तब पंचायत ने तालाब के गहरीकरण का कार्य प्रस्तावित किया था। तब महात्मा गांधी नरेगा से चार लाख 40 हजार की लागत से इसके गहरीकरण का कार्य स्वीकृत किया गया। इस कार्य से गांव में मनरेगा श्रमिकों को फरवरी से जून 2016 तक रोजगार मिला और गांव के पुराने जलस्रोत का पुनरूद्धार भी हो गया। तालाब के गहरीकरण के बाद वर्षा ऋतु में यह पानी से लबालब भर गया। इसके बाद पंचायत ने अपने आय के स्रोत बढ़ाने के लिए इसे ठेके पर देने का निर्णय लिया। इस तालाब के किनारे रहने वाले गांव के ही आदिवासी किसान श्री अमीर सिंह ने इसके लिए सर्वाधिक बोली लगाई और तालाब को 23 हजार रूपए की राशि में 10 सालों की लीज में पंचायत से प्राप्त किया।
आदिवासी परिवार को मिला सहारा
श्री अमीर सिंह के पास लगभग साढ़े चार एकड़ असिंचित कृषि भूमि है। तालाब के किनारे ही उनका घर और लगभग एक एकड़ की बाड़ी है। इस तालाब को लीज में लेकर उन्होंने अपनी बाड़ी में धान के बाद रबी की फसल में गेहूँ और उड़द का उत्पादन लिया है। वहीं बीते दो साल से उन्हें तालाब में मछली पालन के व्यवसाय से लगभग दो लाख रूपए की वार्षिक आमदनी भी होने लगी है। इस संबंध में श्री अमीर सिंह बताते हैं कि अब उन्हें रोजगार को लेकर कोई चिंता नहीं है। पहले साल तो मछली पालन से उन्हें कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ, परंतु अब दो वर्षों से अच्छी कमाई हो रही है। मछली बेचने के लिए बाजार की उपलब्धता पर वह हंसकर कहते हैं कि “साहब! कहूं नई जाय ला परय, तलवा के भीठा में सब बिक जथे।”
सदभाव की मिसाल
गांव में रहने वाले वनवासी दिल से किस कदर जिंदादिल होते हैं, यह श्री अमीर सिंह से मिलकर जाना जा सकता है। वे गांव के बाहर के लोगों के लिए मछली की दर 2 सौ रूपए प्रति किलो रखते हैं, परंतु गांव वालों को वह मात्र 150 रूपए प्रति किलो की दर से ही अपनी मछलियां बेचते हैं। इसका कारण वे बताते हैं कि गांव के लोग एक परिवार के होते हैं, उनसे सौदा नहीं किया जाता है। हमेशा भाई-चारा बनाये रखना होता है। गांव में ऐसे किसान जिनके खेत इस तालाब के आस-पास हैं, उन्हें खरीफ के मौसम में जब कभी धान का रोपा लगाने के लिए पानी की जरुरत होती है, उन्हें वे सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। वहीं ये किसान भी मछली पालन और आखेट में श्री अमीर सिंह की मदद करते हैं।
आवास निर्माण में मिली मदद
श्री अमीर सिंह के परिवार के पास आज कृषि के बाद मत्स्य पालन मुख्य व्यवसाय हो चुका है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना के तहत सूचीबद्ध होने से उन्हें साल 2018-19 में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का लाभ मिला था। अपने लिए पक्के आवास का सपना पूरा होने की खुशी उनके चेहरे पर भी झलकती है। आवास निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा से जहाँ उनके परिवार को पूरे 90 दिन की मजदूरी का लाभ मिला, वहीं उन्होंने महात्मा गांधी नरेगा से गहरीकरण हुए इस तालाब में मछली पालन से कमाए पैसे को भी घर के निर्माण में लगाया। वे दोनों पति-पत्नी खुश होकर महात्मा गांधी नरेगा योजना से मिले लाभ के बारे में हंसकर कहते हैं “अब बुढ़ापे की कोई चिंता नहीं है। पैसे आने से सब कुछ अच्छा हो गया है।”