दिल्ली हिंसा में पुलिस और सीएपीएफ ने भारतीय सेना जैसी वर्दी पहन कर कानून व्यवस्था लागू की

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नई दिल्ली
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा पर रोक लगाने के लिए एहतियाती कदम उठाए गए हैं और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है। इस बीच आर्मी ने रक्षा मंत्रालय से अपील की है कि यह सुनिश्चित किया जाए सीएपीएफ और पुलिस बलों के जवान कानून-व्यवस्था लागू करने और दंगा विरोधी ऐक्शन के दौरान 'डिसरप्टिव पैटर्न' वाली यूनिफॉर्म ना पहनें, जिन्हें आमतौर पर 'कॉम्बैट यूनिफॉर्म' कहा जाता है।

सेना ने क्यों की ऐसी गुजारिश
23 फरवरी को सीएए के विरोध और समर्थन दोनों को लेकर लोग सड़क पर उतर आए। देखते ही देखते उत्तर पूर्वी दिल्ली में दोनों समूहों में मारपीट शुरू हो गई, जिसने बाद में हिंसा का रूप ले लिया। वहां से आई तस्वीरें और विडियो दिखा रहे हैं कि सुरक्षा बलों ने ऐसी यूनिफॉर्म पहनी है जो काफी हद तक सेना की वर्दी से मिलती जुलती है। यूं लग रहा है मानो इलाके में सेना लगा दी गई है। इसकी तस्वीरें और विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनसे लोगों में ये संदेश जा रहा है कि दिल्ली में सेना बुला ली गई है।

एएनआई के अनुसार भारतीय सेना के सूत्रों से ये पता चला है कि उनकी ओर से पुलिस बल और प्राइवेट सिक्यॉरिटी एजेंसी के खिलाफ सख्त ऐक्शन लिया जाएगा, क्योंकि उन्होंने नियमों के खिलाफ जाकर सेना जैसी दिखने वाली वर्दी पहनी है। सूत्रों ने कहा है कि इसे लेकर गाइडलाइन्स हैं, जो किसी भी पैरामिलिट्री और किसी राज्य की पुलिस को ऐसी वर्दी पहनने से रोकती हैं। बता दें कि सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने ऐसी तस्वीरें भी शेयर की हैं, जिनमें दिख रहा है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सिक्यॉरिटी गार्ड्स ने भी सेना जैसी वर्दी पहनी है।

ऐसी वर्दियां बेचने पर भी लगे रोक
सेना ने कहा है कि ऐसे पैटर्न की वर्दी सिर्फ उन्हीं सीएपीएफ और पुलिस के जवानों को पहनने की इजाजत मिलनी चाहिए जो जंगली इलाकों ये नक्सल इलाकों में तैनात हों। साथ ही आर्मी पैटर्न की वर्दी बेचे जाने पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। बताया जा रहा है कि सेना ने उनके जैसी वर्दी पहने जाने की शिकायत सरकार से भी की है। सेना की ओर से ऐसी शिकायत पहले भी कई बार की जा चुकी है। दिल्ली में जब आर्मी पैटर्न की वर्दी पहनी पुलिस तैनात की गई थी, तो भारतीय सेना ने ट्वीट कर के सफाई दी थी कि दिल्ली में भारतीय सेना को नहीं उतारा गया है, क्योंकि लोगों में कनफ्यूजन की वजह से ऐसी अफवाह फैल रही थी कि दिल्ली में भारतीय सेना बुला ली गई है।

 

कई बार हुई है सरकार से चर्चा
सेना और सरकार के बीच में 2004, 2012,2013, और 2015 में इस मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है। 2016 में हरियाणा के जाट आंदोलन के दौरान जब आर्मी ने हरियाणा में फ्लैग मार्च किया था, तो उन्हें ARMY टैग अपने साथ लेकर चलना पड़ा था। उसी साल आर्मी की वर्दी पहनकर कुछ आतंकी पठानकोट में घुसे थे और हमला किया था। उसके बाद भी पंजाब और जम्मू-कश्मीर से सीमावर्ती इलाकों में सेना ने ये आदेश जारी किया था कि सेना की वर्दी जैसी यूनिफॉर्म बेचने गैर कानूनी है।

आर्मी वाली वर्दी पहनने के नियम क्या हैं?
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 की धारा 171 के अनुसार अगर कोई शख्स किसी सरकारी कर्मचारी की क्लास वाली वर्दी पहनता है ताकि लोग उसे उसी क्लास का समझें। यानी अगर किसी शख्स की मंशा ये है कि लोगों के भ्रमित कर के अपनी पहचान बदली जाए तो इसके लिए सजा का प्रावधान है। ऐसा करने वाले को 3 महीने की जेल या 200 रुपए का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

इसी तरह 'द प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसीज रेगुलेशन ऐक्ट' 2005 की धारा 21 के अनुसार अगर कोई प्राइवेट गार्ड या सुपरवाइजर आर्मी, एयर फोर्स, नेवी या अन्य किसी सेना जैसी दिखने वाली वर्दी पहनता है तो उसके खिलाफ भी सजा का प्रवाधान है। ऐसा करने वाले गार्ड या सुपरवाइजर समेत उसकी एजेंसी के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है, जिसके तहत 1 साल तक की सजा और 5000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।

भारतीय सेना ने पहली बार कब पहनी कॉम्बैट यूनिफॉर्म
1947 से पहले भारतीय सेना की सिर्फ एक खाकी यूनिफॉर्म हुआ करती थी। आजादी के बाद भारतीय सेना ने अपने सैनिकों के लिए ऑलिव ग्रीन रंग की वर्दी चुनी, उत्तर-पूर्व के जंगलों और बर्मा मे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी लड़े थे। भारतीय सेना में डिसरप्टिव पैटर्न की ये कॉम्बैट यूनिफॉर्म 80 के दशक में लागू की गई, जब भारत की शांति सेना श्रीलंका के जंगलों में लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से लड़ने गई थी। 2005 में वर्दी में कुछ बदलाव किए गए, जब जनरल जे जे सिंह आर्मी चीफ थे। वही एक दूसरे को क्रॉस कर ने वाली दो तलवारों का वॉटरमार्क लाए थे। सेना की वर्दी पर Indian Army लिखवाना भी उन्हीं की पहल थी, ताकि पुलिस बल सेना की वर्दी की नकल ना करें।

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