गन्‍ने की पूजा क्‍यों होती है द‍िवाली पर

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दिवाली पूजन में कई जगह गन्‍ना रखने की परांपरा होती है। पूजा की सामग्री में मीठे रस से भरे गन्‍नों को पूजा में रखा जाता है और फिर अगले द‍िन गन्‍ने को चूसा जाता है। दरअसल ऐसा माना जाता है क‍ि महालक्ष्‍मी का एक रुप गजलक्ष्‍मी भी है तो वो इस रुप में ऐरावत हाथी में सवार नजर आती है। ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य सामग्री ईख यानी गन्‍ना है। इसल‍िए गन्‍ने को प्रमुखता द‍िवाली पूजन में जगह दी जाती है। ताकि ऐरावत प्रसन्‍न हो और उसके प्रसन्‍न होने से महालक्ष्‍मी भी प्रसन्‍न होंगी। द‍िवाली में गन्‍ने की पूजा को लेकर एक कथा भी प्रचल‍ित है। आइए जानते है क‍ि क्‍यों द‍िवाली पूजा में गन्‍ने को महत्‍व द‍िया जाता है।

कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी संग पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे। तभी अचानक विष्णुजी को कुछ याद आया। फिर उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि मैं दक्षिण की तरफ जा रहा हूं, तुम यहीं पर रुककर मेरी प्रतिक्षा करना। यह बात कहकर विष्णुजी चले गए। माता लक्ष्मी ने थोड़े समय उस स्थान पर रूककर भगवान विष्णु की प्रतिक्षा करने लगी। लेकिन स्वभाव से चंचला होने के कारण वह कहां एक स्थान पर रुकने वाली थी। माता लक्ष्मी इधर-उधर विचरण करने लगी तभी उन्हें वहां पर एक गन्ने का खेत दिखा। माता लक्ष्मी ने खेत से गन्ने को तोड़कर चूसना आरंभ कर दिया। तभी भगवान विष्णु वहां पर लौट आए। लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते देखकर वे नाराज हो गए और कहने लगे कि आपने बिना खेत के मालिक से पूछे गन्ना तोड़कर कैसे खा लिया। इस गलती के लिए सजा के तौर पर उन्होंने कहा कि तुम्हे इस किसान के घर 12 वर्षो तक रहना पड़ेगा और उसकी देखभाल करनी पड़ेगी। यह बात कहकर विष्णु जी वैकुंठ लौट गए और माता लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं। लक्ष्मीजी की कृपा से वह किसान थोडे ही दिनों में बहुत ही धनवान और सुखी रहने लगा।

12 वर्ष बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को बुलाने आए तो उस किसान ने उन्हें जाने से रोकने लगा। तब भगवान विष्णु ने उसे वर दिया कि लक्ष्मी जी के जाने के बाद वह अदृश्य होकर तुम्हारे घर पर निवास करेंगी। अगर तुम अपने घर में दीपक जलाओगे और मेरी पूजा करोगे तो मेरा वास हमेशा तुम्हारे घर पर होगा। तभी से लक्ष्मी पूजा में उनका प्रिय गन्ना रखा जाने लगा।

महालक्ष्मी का एक रूप गजलक्ष्मी भी है। ऐसे में लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख यानी गन्ना है। दिवाली के दिन पूजा में गन्ना रखने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और ऐरावत की प्रसन्नता से महालक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। पूजा पूरी होने पर प्रसाद के रूप में गन्ने का सेवन भी किया जाता है।

वाणी रहती है मधुर
ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार गन्‍ने में मिठास होती है, ठीक उसी प्रकार हमें भी अपने व्‍यवहार और वाणी में मिठास रखनी चाह‍िए। यदि हम वाणी में मिठास रखेंगे तो घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। हमारी पराम्‍परा दरअसल हमारी सेहत से ही जुड़ी हैं। गन्‍ना सिर्फ मीठा ही नहीं होता, ये सेहत के ल‍िए गुणकारी भी होता है।

अल्मोड़ा, नैनीताल समेत पूरे पहाड़ों में गन्ने से बनी मां लक्ष्मी की मूर्तियों की पूजा अर्चना की जाती है। सुबह से ही लोग घरों में गन्ने के पेड़ से मूर्ति का निर्माण करते हैं। इस मूर्ति को बनाने के लिए कांसे की थाली में गन्ने को तीन भागों में काटा जाता है। इसके बाद इस मूर्ति को ढांचा देने के बाद नींबू या फिर मुखौटे से लक्ष्मी जी की मूर्ति बनाई जाती है। इसके बाद मूर्ति को जेवर और मालाएं पहना दी जाती हैं। मां लक्ष्मी का वास घर में हो, इसके लिए मूर्ति को खूब सजाया-संवारा जाता है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है।

गन्‍ने को माना जाता है शुभ
मानस खंड व पुराणों में गन्ने के वृक्ष को काफी शुभ व फलदायक माना गया है। इस कारण पहाड़ों में शादी-विवाह, जनेऊ समेत अन्य धार्मिक कार्यों में गन्ने के पौधे को पूजने का विधान है। यही कारण है कि लक्ष्मी की मूर्ति पहाड़ों में इसी गन्ने के पेड़ से बनाई जाती है। वहीं धार्मिक ग्रंथों के जानकार बताते हैं कि इस तरह से पूजा करने से मां लक्ष्मी खुश होकर धनवर्षा करती हैं।

 

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