ओबीओआर परियोजना पर भारत का समर्थन पाने की चीनी कोशिशें नाकाम

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बीजिंग : वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर चीन एक बार फिर भारत का समर्थन हासिल करने में नाकाम हुआ. बीजिंग में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन की ताजा कोशिश पर पानी फेर दिया. शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने बीजिंग पहुंची भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यह साफ कर दिया कि उनका देश वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनेगा. वन बेल्ट वन रोड चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है. इसके तहत वह एशिया और उसके पार सड़कों, बंदरगाहों और रेल नेटवर्क का जाल बिछाना चाहते हैं.

प्रोजेक्ट के तहत चीन और पाकिस्तान के बीच 54 अरब डॉलर की लागत वाला इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाया जा रहा है. चीन से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाने वाला यह कॉरिडोर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरता है. भारत कश्मीर को अपना हिस्सा बताता है. बीजिंग में विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान चीन ने भारत को मनाने की कोशिशें की, जो नाकाम रहीं. विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी एक विज्ञप्ति में इस बात की जानकारी दी गई. आधिकारिक बयान में कहा गया, “कजाखस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने “चीन के बेल्ट एंड रोड प्रस्ताव के प्रति अपना समर्थन दोहराया है.” भारत के इनकार को लेकर इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी गई.

शुक्रवार और शनिवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन का दौरा करने वाले हैं. इस दौरान चीनी शहर वुहान में उनकी चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात होगी. माना जा रहा है कि चीनी राष्ट्रपति एक बार फिर यह मुद्दा उठाएंगे. हो सकता है कि दोनों पक्षों के बीच सीमा विवाद और इस प्रोजेक्ट को लेकर तोल मोल भी हो.

2017 में दोनों देशों के रिश्ते काफी तनावपूर्ण रहे. डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं 73 दिन तक आमने सामने थीं. एक मौका ऐसा भी था जब दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे पर पत्थरबाजी की और धक्का मुक्की भी हुई. इन विवादों के बाद दोनों के देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच अब पहली बार द्विपक्षीय बातचीत होने जा रही है.

भारत दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते सैन्य और आर्थिक प्रभाव से चिंतित है. दोनों देशों के बीच 1940 के दशक से सीमा विवाद चला आ रहा है. 1962 में सीमा विवाद के चलते एक युद्ध भी हो चुका है. लेकिन आज तस्वीर काफी अलग है. अब दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं. दोनों के पास विशाल सेनाएं हैं. इसके साथ ही आर्थिक विकास को लेकर भी भारत और चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था की धुरी बने हुए हैं. दोनों अब युद्ध जैसा जोखिम मोल नहीं लेना चाहते हैं.

चीन और अमेरिका के बीच छिड़ चुके कारोबारी युद्ध का असर भी बीजिंग की विदेश नीति पर दिखने लगा है. चीन भारत के साथ नर्म हुआ है. यही वजह है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बिना ही मोदी दो दिन का चीन दौरा करने जा रहे हैं. भारतीय प्रधानमंत्री जून में एक बार फिर चीन जाएंगे. तब वह शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे.

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